Book Title: Anusandhan 2002 03 SrNo 19
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ ट्रॅक नोंध भगवान महावीरना आहार संबंधी भ्रमणा भगवान महावीरे पण मांसाहार करेलो, तेवी एक भ्रमणा पुनर्जीवित थई छे. वैद्यकीय पारिभाषिक शब्दोना तथा तेना अर्थना अज्ञानने कारणे केटलाक विद्वानो आवी भ्रमणा सेवे छे तथा फेलावे छे. भगवतीसूत्र नामे प्रसिद्ध जैन आगममां एक पाठ एवो आवे छे के जेमां 'कवोयसरीर' - कपोतशरीर, 'मज्जारकड'-मार्जारकृत अने 'कुक्कुडमंस' - कुक्कुटमांस - आ त्रण शब्दो जोवा मळे छे. आ त्रणे शब्दो देखीती रीते जुदा जुदा प्राणीओना (कबूतर, बिलाडी अने कूकडो) वाचक छे ज. परंतु भारतीय शास्त्रोनी अर्थघटनने लगती प्रणालिकाथी जेओ वाकेफ हशे तेमने, शब्दार्थनो निर्णय करी आपनारां विविध परिबळोनी जाणकारी हशे ज. तेमां 'अर्थः प्रकरणं लिङ्ग कालो व्यक्तिः स्वरादयः । शब्दार्थस्याऽनवच्छेदे विशेषस्मृतिहेतवः" आ पद्यमां वर्णित 'प्रकरण' नी पण समजण होय ज. तेने मतलब ए छे के शब्द कया प्रकरणमां एटले के संदर्भमां - अधिकारमा प्रयोजायो छे ते जोईने ज तेनो अर्थ नक्की थई शके. दा.त. रसोई बनावतां बनावतां रसोई करनार 'सैन्धवमानय' एम सूचवे, त्यारे त्यां 'अश्व' लावीने ऊभो न कराय, परंतु सिंधालूण ज लाववा- होय; अने रणभेरी वागी ऊठे त्यारे शूरो योद्धो 'सैन्धवमानय' नी बूम पाडे, त्यारे त्यां मीठं न लवाय, घोडो ज लाववानो होय. आ उदाहरणनी जेम ज, प्रस्तुत प्रकरणमां पण, भगवान पोताना व्याधिनी चिकित्सा माटे कपोतशरीर वगेरे लाववा-न लाववानी वात करे छे, त्यारे आ संदर्भमां चालु शब्दकोशना दर्शावेल अर्थ प्रमाणे न चाले, परंतु आयुर्वेदशास्त्र अने वनौषधिकोशना अर्थो पकडवा जोईए. ते कोश-प्रमाणे उपर्युक्त त्रणे शब्दो जुदीजुदी वनस्पतिना वाचक छ : कपोतशरीर : काकजंघा (एक प्रकारचें शाक). मार्जार : चित्रक कुक्कुट : शितिवार (शाकनो एक प्रकार). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170