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March-2002
दस्तावेजी छतां भावुक रचना छे. आ शोध बदल श्रीशीलचन्द्रसूरिजीने अभिनंदन घटे छे. लेखक मालजी नागजी कच्छी पालीताणामां ज वसी गया हशे ने तेथी ज 'कच्छी' तरीके प्रसिद्ध थया हशे. वळी लखाणनी गुजराती भाषा पण लांबा महावरानी चाडी खाय छे.
लेखमां जाणवा जेवू घणुं छे. पेरा १३मां आवेलुं मुनि कल्याण विमलजी- नाम ऐतिहासिक छे अने तेने एक अन्य आधार पण मळे छे. पार्श्वचन्द्रगच्छना क्रियोद्धारक संवेगरंग-रंगितात्मा श्रीकुशलचन्द्रजी गणिना जीवनमां आ श्रीकल्याणविमलजीए अगत्यनो भाग भजव्यो हतो. कच्छना कोडाय गामथी पांच युवान मुमुक्षुओ पालीताणा पहोंचेला. नागोरी तपागच्छ (पार्श्वचन्द्रगच्छ)ना श्री पूज्य गच्छाधिपति श्री हर्षचन्द्रसूरिनी पासे एमने दीक्षा लेवी हती. एमने त्यां श्रीकल्याणविमलजी मळी गया. एमणे कडं के माबापनी रजा वगर हर्षचन्द्रसूरि तमने दीक्षा आपशे नहि. परंतु पांचे जणनी वैराग्यदशा जोईने एमणे ज मार्ग बताव्यो : स्वयं मुनिवेश पहेरी तळेटीए बेसो, आथी तमारो मामलो संघ पासे जशे, ने संघ वचमां पडशे तो हर्षचन्द्रसूरि तमने स्वीकारशे. पांचे मुमुक्षुओए ए प्रमाणे कर्यु अने तेमनी भावना साकार थई. एमांना एक श्रीकुशलचन्द्रजी गणिवर हता. आ प्रसंग सं. १९०७नो छे, मालजी नागजीनो लेख सं. १९०८ नो छे. (संचवायेली नोंधोना आधारे श्री कुशलचंद्रजी गणिवरनुं जीवनचरित्र आ पंक्तिओ लखनारे लख्युं छे : 'मंडलाचार्य श्री कुशलचंद्रजी गणिवर.' प्रका. श्री कच्छप्रदेश पार्श्वचन्द्रगच्छ जैन संघ, बीदडा, १९९१.)
__ मालजी नागजी कच्छीए मुनि श्रीकल्याणविमलजीना परोपकार, आराधना अने 'शीतलता' पमाडवाना गुणनो उल्लेख कर्यो छे तेने पण उपर्युक्त प्रसंगथी पुष्टि मळे छे.
पेरा ३०मां 'गुणज'नो उल्लेख छे. आ एक हथियारवें कच्छी नाम छे. अणीदार खीला अने सांकळ साथेनुं जाडं लाकडु रहेतुं, जेने गोळ गोळ घुमावीने फेंकवामां आवतुं.
महान शास्त्रकारोमां श्री हरिभद्रसूरिनुं नाम अनेक रीते विशिष्ट छे. अध्यात्मक्षेत्रे प्रवर्तती विविध परिभाषाओ तथा पद्धतिओनी आंतरिक एकसूत्रता
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