Book Title: Anusandhan 2002 03 SrNo 19
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 148
________________ 143 अनुसंधान-१९ अने विशेषताओने पोताना अनेक ग्रंथोमां अद्भुत रीते एमणे समजावी. श्री नगीन जी. शाहनो आ अंकमांनो लेख श्रीहरिभद्रसूरिना ज्ञान अने विचारनी सीमाओ केटली विस्तरेली हती तेनुं दर्शन करावी जाय छे. जैन, बौद्ध अने योगदर्शननो तेमनो अभ्यास केटलो ऊंडो हशे ?- के जेना परिणामे तेओ आ बधा मार्गानुं संतुलित संश्लेषण करी शक्या. श्रीनगीनभाई- पण अवगाहन विस्तीर्ण छे, तेथी ज श्री हरिभद्रसूरिनी ज्ञानाराधनानी विशेषता जोई शके छे. तुलनात्मक अध्ययननी आधुनिक पद्धतिना क्या क्या लाभ छे तेना निदर्शन तरीके मूकी शकाय एवी सामग्री आ लेखमां छे. 'अनुसंधान' १५मां प्रगट थयेल 'सारस्वतोल्लास' काव्यना कर्ता कोण ? ए प्रश्ननो जवाब श्रीजयंतभाई कोठारी तरफथी आ अंकमां मळे छे. पत्रचर्चामां योग्य चर्चा-विचारणा साथे आना कर्ता, नाम 'रत्नमंडन' होवार्नु तेमणे शोधी आप्युं छे. श्रीकोठारी साहेबनी संशोधक प्रज्ञा हवे आपणी वच्चे नथी रही ! आ अंक मुद्रणदोषोथी बहुधा मुक्त रही शक्यो छे. आ संपादकश्रीनी सफळता छे. महत्त्वनी एक बे अशुद्धिओ नोंधवी रही पृ. २८-२९ पर ajaya अने ajeya मां स्पेलिंगनी भूल जणाय छे, जे अर्थमां बाधक बने एवी छे. पृ. ५७ पर सातमी पंक्तिमां tying the not' छे त्यां knot जोइए. पृ. १९५ अभयदेवसूरिना उद्धरणमां 'देवशा प्ररूपणा' छे त्यां 'देशना प्ररूपणा' जोईए. एक सूचन करवानी इच्छा छे : 'अनुसंधान'नां पृष्ठो पर वर्ष/मास/ अंक जणावती पंक्ति होवी जरूरी छे. जैन देरासर नानी खाखर (कच्छ) ३७०४३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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