Book Title: Anusandhan 2002 03 SrNo 19
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-१९ पशुआं पोकार सुणी करी रे सा० जाओ छो निरधार व० । तुम्हनई तो एहवू नवि घटे रे सा० करी करी पीओ मुझ सार व० ॥
श्री० ॥२॥
न मिल्यानो धोखो नहि रे सा० मिलीनइं जाओ छोडी व० । पहिला तो एहq जाण्युं हतुं रे सा० पुंहचसे मनना कोडी व० ॥श्री० ॥३॥
नवभव केरी प्रीतडी रे सा० छटकीनिं द्यो छो छेह व० ।। कीडी उपर कटकी कांई करी रे सा० तुमने अवर मिली' कुण तेह व०
||श्री०॥४॥
भोजन पीरसी थाल ताणी लीइं रे सा० सींचीने कुण खींचे मूल व० । पुरुष हीयानां कठोरडा रे सा० 'ए ऊखाणो साचो थयो मूल व०
॥श्री०॥५॥
पहिलई तो नेह दिखाडिने रे सा० हवइ वाल्हा छोडो छो गेह व० । करुणासागर किरपा करो रे सा० पुंहती गढ गिरनार ससनेह व०
॥श्री० ६ ॥
संजम लइ पीयु पहिली गई रे सा० शिवपुर उत्तम 'ठान व० । श्रीजिनचंद्रसूरितणो रे सा० हीर करे गुणगान व० ।श्री०॥७॥
इति श्री नेमिनाथजिन स्तवनं ॥ १. मली २. 'ए' नथी ३. ठाम ४. गुणग्राम
श्रीपार्श्वनाथस्तवन सांभळज्यो. हवें कर्मविपाक ए देशी ॥
श्रीपासजिणेसर प्रभुने पूजीई रे आणी हरख अपार । पूजतां ए जिनपूजन कह्या रे 'आणे भवनें पार ॥श्री०॥१॥
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