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अनुसंधान-१९ समवसरणमें राजता जी देतां भवि उपदेश । . रत्नत्रयी वरसें सदा जी अनुपम सुंदर वेसरे जि० ॥५॥
समकित दान आपीयां जी दलीद्र नसाड्यां दूर । ते दान लेई सुखी' थयां जी आनंद उपजई पूर रे जि० ॥६॥
श्रीजिनचंद्र प्रभु माहरो जी जीनजी परम आधार । श्रीहीरसागर प्रभु गुणनिलाजी। वो मय(मं)गलमालरे जीनजी, अने वरत्यो जयजयकार रे जीनजी ॥७॥
इतिश्री महावीर जिन स्तवनम् ॥ इति श्री चौवीशी स्तवन सम्पूर्ण : ॥ श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु ।
श्रीकारी हुई ॥ शुभ छई ॥
१. सुखी या
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