Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 233
________________ ८. अनुसंधान - १६ •228 अंक प्रकाशित थयेल छे. त्रीजो अंक हवे प्रकाशनाधीन छे. प्रकाशक : जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति, खंभात. स्व. जैनाचार्य श्रीविजयकस्तूरसूरिजीनी चालु वर्षे उजवाएली जन्मशताब्दी निमित्ते प्राकृत विज्ञान बालपोथी १ - २ (सचित्र) प्रकाशित थई छे. प्राकृत भाषामां प्रवेश करवां उत्सुक अभ्यासुओ माटे वधु उपयोगी प्रकाशन. संपादक आ.विजयसोमचन्द्रसूरिजी छे. आशरे १२० वर्षो अगाउ भावनगरना श्रावको पंडित कुंवरजी आणंदजी वगेरेए जैन साहित्यना अध्ययनादि अर्थे तथा विद्याना प्रसारार्थे 'जैन धर्म प्रसारक सभा' नी स्थापना करेली. तेना उपक्रमे हजारेक ग्रंथो पण प्रगट थयेला. ते सभानुं मुखपत्र 'जैन धर्म प्रकाश' शताधिक वर्षो सुधी प्रकाशित थतुं रह्युं छेल्लां त्रणचार दायकाथी ते सभा मृतप्राय बनी हती. तेनो समृद्ध ग्रंथभंडार तथा प्रकाशन प्रवृत्ति छिन्न भिन्न थयेली. ताजेतरमां आ. विजयशीलचन्द्रसूरिजीनी महेनतथी तेनो पुनरुद्धार थयो छे. तेना मकाननो जीर्णोद्धार, लायब्रेरीनुं पुनर्गठन, तथा प्रकाशन-प्रवृत्तिनो प्रारंभ थयेल छे. प्रथम प्रकाशन 'श्रीपाल राजाना रासनुं रहस्य' नामक ग्रंथ छे. सूरत- स्थित विद्वान जैन प्राध्यापक पं. धीरजलाल डाह्यालाल महेताए अभ्यासीओने उपयोगी थाय तेवी सरल गुजराती भाषामां नीचेना ग्रंथोना अनुवाद तथा विस्तृत विवेचन कर्यां छे. १. योगविंशिका - सटीक (कर्ता : हरिभद्रसूरि तथा वा. यशोविजयजी) २. योगशतक सटीक (कर्ता : हरिभद्रसूरि ) ३. १ थी ४ कर्मग्रंथो (४ भागमां ) ( कर्ता : श्रीदेवेन्द्रसूरि ) ४. पूजासंग्रह ( कर्ता : वीरविजयजी तथा अन्य ) ५. रत्नाकरावतारिका १ - २ ( कर्ता : रत्नप्रभसूरि) ६. योगदृष्टिसमुच्चय - सटीक (कर्ता : हरिभद्रसूरि ) Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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