Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 251
________________ अनुसंधान-१६ . 246 'अनुसन्धान'नी प्रकाशन संस्था श्रीहेमचन्द्राचार्य निधिने पण पं. मालवणियाजीने 'श्रीहेमचन्द्राचार्य चन्द्रक' प्रदान करवानो सुयोग केटलाक वखत पूर्वे सांपडेलो. आवी मूर्धन्य दार्शनिक प्रतिभानी चिरविदायथी गुजरात, विद्याजगत तेमज संस्कारजगत रांक बन्युं छे, एम कहेवामां जरा पण अतिशयोक्ति नथी. तेमना आत्माने शांति मळो तेवी प्रार्थना साथे तेमना परिवार पर आवी पडेली आ आपत्तिने सहन करवानुं तेमने बळ मळो तेवी प्रार्थना. पं. दलसुखभाई मालवणियानुं ता. २८-२-२०००ना रोज दुःखद अवसान थयुं । जिनविजयजी, सुखलालजी, बेचरदासजी, पुण्यविजयजीनी जैन विद्याना तलस्पर्शी अध्ययन-संशोधननी उदार, उज्ज्वल, बलिष्ठ परंपराने एमणे जीवंत राखी। ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनी भारतनो एक अग्रणी संशोधन संस्था तरीके विकास, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीनी ग्रंथ श्रेणी, ला. द. श्रेणीनी, सिंघी जैन, श्रेणी, हावर्ड श्रेणी वगैरेनी समकक्षता; संबोधि संशोधन-सामयिकनी उच्च कक्षा, संशोधकोने मुक्तपणे सहाय-प्रदान ए एमणे जीवनभर चलोवला ज्ञानयज्ञनां फळो छे। हरिवल्लभ भायाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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