Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसंधान-१६ • 235
'प्राचीन-मध्यकालीन साहित्य संग्रह'
सद्गत मोहनलाल दलीचंद देशाईनी जैन साहित्यनी सेवा अजोड छे. एमर्नु घणुं लेखन हजु सामयिकोमा दटायेलुं पड्युं छे. श्रीदेशाईए अनेक प्राचीनमध्यकालीन कृतिओने सामयिकोनां पानां पर पहेली वार प्रकाशित करी छे. आवी कृतिओनो संचय उपर्युक्त नामथी प्रकाशित करवा- लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरे स्वीकार्यु छे. ग्रंथना संपादननी जवाबदारी श्रीजयंत कोठारी संभाळी रह्या छे.
__ आ ग्रंथमां मोटी संख्यामां गुजराती (क्वचित् हिंदी) अने थोडी संस्कृतप्राकृत-अपभ्रंश रचनाओ छे. बहुधा पद्यरचनाओ छे, केटलीक गद्यरचनाओ पण छे. एमां रास-कथा, फागु, बारमास, संवाद, गीत-पद, गझल, स्तवन, सज्झाय, सुभाषित, उखाणां, हरियाळी, चैत्यपरिपाटी, तीर्थमाळा, तीर्थयात्रा, पट्टावली, मुनिचरित्र, औतिहासिक पत्रो वगेरे वैविध्यपूर्ण सामग्री छे. १०० उपरांत कृतिओने समावतो आ ग्रंथ ५०० उपरांत पानांओमां विस्तरवानी धारणा छे.
कृतिओ जेम मळी छे तेम मूकी देवामां नथी आवी, परंतु संपादके पोतानी सूझसमजथी अने हाथवगां थयेलां अन्य साधनो (मुद्रित ग्रंथो अने हस्तप्रतो सुद्धां)नी मददथी घणी शुद्धि करी छे. कर्ता-कृति विशेनी आवश्यक माहिती जोडी छे अने विस्तृत शब्दकोश आपवानुं पण धार्यु छे. ग्रंथ अत्यारे मुद्रणाधीन छे.
जयंत कोठारी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254