Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 4
________________ निवेदन 'अंगपक्टिसुत्ताणि' धर्मप्रिय स्वाध्यायशील पाठकों के करकमलों में पहुँचाते हमें हर्ष हो रहा है / इसका प्रथम विभाग जुलाई 1979 में प्रकाशित हुआ था, दूसरा अगस्त 1980 में और तीसरा दिसम्बर 1981 में प्रकाशित हुआ / इन तीनों विभागों की हज़ार-हजार प्रतियाँ प्रकाशित हुई और 1000 प्रतियों का यह संयुक्त ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। ___ कार्य की रूप रेखा बनाते समय, समय का जो अनुमान लगाया गया था, वह हम साध नहीं सके / अनेक प्रकार की बाधाएँ आई, साधन-सामग्री प्राप्त करना इस युग में कितना कठिन है ? फिर प्रेस मशिनरी बिजली के आधीन होने से देश के सभी प्रेस कठिनाई में पड़ गए / काम करते-करते बिजली रूठ कर चली जाती है और यन्त्र स्थिर हो जाते हैं। किसी प्रकार जिनागमों के 11 सूत्रों का अंग विभाग पूरा कर के प्रकाशित किया जा रहा है। अब जनवरी 1982 में ही शेष सूत्रों का मुद्रण प्रारंभ किया जा रहा ' है। हमारा प्रयत्न तो सदैव की भाँति शीघ्र प्रकाशन का रहेगा। एकादशांग के अपने अध्ययन पर से एक विस्तृत प्रस्तावना लिखने का विचार हुआ था, परंतु समय न मिलने और शारीरिक प्रतिकूलता के कारण

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