Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ [8] 4 +52 शुद्ध . अफासुर्य पिटुक्खुमंथु तहप्पगारं पडिग्गहगं वसमाणे वा (तहेव तं) (जहेव ते) तं पच्छाकम्म जं: उवचरए परिभुत्तपुवा 12 2 TO 60 64 उच्छ . . . 68 74 अशुद्ध अफासु पिलक्खुमंथु . तहप्पगारं वसमाणे 18 तहेव तं जहेव तं . जं पच्छाकम्मं तं उवरए परिभुत्तव्वा अच्छे सिवा छायए - तेमयावि महद्धणबंधाई 21 अवट्टु अणुण्णविय वासामो . चुण्णगवणंसि गंडं वा 17 रसमस्साउं 20-21 णो रज्जेजा णो सज्जेजा करायं 23 पव्वईए पुच्छए णियहसत्तू . वण्णेहिं 0 0 WW सिया घायाए ते यावि महद्धणबंधणाई अवहट्टु अणणुण्णविय वसामो जाव 91 108 108 18 गंडं वा जाव रसमणासाउं णो सज्जेजा णो रज्जेजा कारयं ते पव्वईए तुच्छए -णिहयसत्तू अण्णेहिं 138 140
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