Book Title: Anekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ 8 अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, कुलपति राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली रहे तथा मुख्य वक्ता प्रो. राजाराम जैन नोएडा, प्रो. शुभचन्द्र मैसूर विश्वविद्यालय मैसूर तथा प्रो. कमलेश कुमार जैन जैन बौद्ध दर्शन विभागाध्यक्ष का. हि. वि. वि. वाराणसी के विशिष्ट व्याख्यान सम्पन्न हुए। अनेकान्त के गत अंक 62/2 अप्रैल-जून 2009 में डॉ राजाराम जैन का व्याख्यान 'आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि एवं उनका षट्खण्डागम', प्रो. कमलेश कुमार जैन का व्याख्यान 'श्रुताराधना का पर्व श्रुतपंचमी', प्रो. शुभचन्द्र का व्याख्यान "Shrutapanchami and Digamber Agam Works", प्रो. राधाबल्लभ त्रिपाठी का व्याख्यान "प्राकृत साहित्य का वैशिष्ट्य" तथा श्री सी. के. जैन का व्याख्यान “अध्यक्षीय वक्तव्य" के शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। यह उक्त माननीयों के व्याख्यानों का सार संक्षेप है, केवल प्रो. राजाराम जी का लिखित रूप उनके स्वयं द्वारा तैयार किया गया है । कार्यक्रम का संचालन डॉ. जय कुमार जैन ने किया। इसी दिन इस व्याख्यान माला के द्वितीय सत्र में एक विद्वत गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें संस्था के पदाधिकारियों, कार्यकारिणी सदस्यों के साथ जैन विद्याओं के निष्णात अधीती मनीषी प्रो. राजाराम जैन नोएडा, प्रो. कमलेश कुमार जैन वाराणसी, प्रो शुभचंद्र मैसूर, डॉ. अशोक कुमार जैन वाराणसी, डॉ. जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर, डॉ. जयकुमार उपाध्ये नई दिल्ली, डॉ. विजय कुमार झा श्री महावीर जी राजस्थान, डॉ. एन. सुरेश कुमार मैसूर, डॉ. रमेशचन्द्र जैन बिजनौर, डॉ. कपूरचंद जैन खतौली, डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन गाजियाबाद, श्री आनन्द कुमार जैन वाराणसी, श्री ओम प्रकाश कालड़ा नई दिल्ली, प्रो. सुदीप जैन नई दिल्ली, डॉ. वीर सागर जैन नई दिल्ली, डॉ जगदीश प्रसाद जैन नई दिल्ली, डॉ. अतुल कुमार जैन नई दिल्ली, डॉ. अरूणा आनन्द नई दिल्ली, डॉ. शिखरचंद जैन नई दिल्ली एवं श्री मनोज जैन 'निर्लिप्त' अलीगढ़ आदि विद्वान् सम्मिलित हुए इस गोष्ठी में प्रायः सभी विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये तथा संस्था के प्रयासों की सराहना की। गोष्ठी का संचालन डॉ. कपूरचन्द जैन खतौली ने किया। संस्था के पदाधिकारियों ने प्रतिवर्ष ऐसी व्याख्यानमालाओं के आयोजन की बात रखी, जिसका उपस्थित विद्वानों एवं समाज के प्रबुद्ध श्रावकों ने करतल ध्वनि से समर्थन किया । इस समारोह की एक अन्य विशिष्ट उपलब्धि रही श्री सुभाष जैन शकुन प्रिंटर्स द्वारा रचित पचरंगा जैन ध्वज गीत का प्रथम बार गायन । प्रत्येक धार्मिक कृत्य के पूर्व ध्वजारोहण एवं ध्वजगीत गायन की परम्परा प्राचीन है। आचार्य श्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा एवं अन्य जैन सम्प्रदायों के आचार्यो की सहमति से भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण दिवस पर पचरंगा ध्वज स्वीकार किया गया था। यद्यपि श्री मिश्रीलाल जी जैन गुना (म.प्र.) ने उस समय एक ध्वजगीत की रचना की थी, किन्तु वह अधिक प्रचलित नही हो पाया। वह पंचरगा ध्वजगीत इस प्रकार था आदि पुरुष के पुत्र भरत का, भारत देश महान । आदिनाथ से महावीर तण्क, करें सुमंगल गान ॥ पांच रंग पाँचों परमेष्ठी, युग को दें आशीष । विश्व शान्ति के लिए झुकावें, पावन ध्वज को शीष ॥Page Navigation
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