Book Title: Anekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 9
________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 श्री सुभाष जैन द्वारा रचित पचरंगा ध्वजगीत यतः विजयी विश्व तिरंगा प्यारा की तर्ज पर जैन ध्वज पचरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा' के रुप में है, अत: यह जैन जन मानस में सर्वत्र प्रचलित हो सकेगा - ऐसी मेरी धारणा है। मैं आशा करता हूँ कि श्रुतपंचमी पर्व पर प्रथम बार गाया गया निम्न लिखित पचरंगा ध्वजगीत लोकप्रियता के शिखर का स्पर्श करेगा तथा जैन संगठन को शक्तिशाली बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा। इस ध्वजगीत में तीन खण्ड हैं। प्रथम में पंचपरमेष्ठी के वन्दन, रत्नत्रय के पालन, हृदय में जिनवाणी के धारण और सिद्धप्रभु के गुणगायन की चर्चा है तो द्वितीय में सत्य, अहिंसा को अपनाने की बात कही गई है। तृतीय खण्ड में अनेकान्त दृष्टि अपनाकर मुक्ति प्राप्ति हेतु संयम धारण करने की मान्यता प्रतिपादित की गई। फलतः यह ध्वजगीत जैनधर्म के हार्द को भी प्रकट करने में समर्थ है। गीत इस प्रकार है - पंचरंगा जैन ध्वज गीत : जैन ध्वज पचरंगा प्यारा। मनवांछित अमृत फल पाओ॥ झण्डा उँचा रहे हमारा॥ जन्म मरण से हो छुटकारा। पंचपरमेष्ठी के वंदन से। झण्डा उँचा रहे हमारा॥ रत्नत्रय के व्रत पालन से ॥ जैन ध्वजः पचरंगा प्यारा। जिनवाणी मन में धारण से। झण्डा ऊँचा रहे हमारा ॥2॥ सिद्धप्रभु के गुण गायन से। इस झण्डे की छाया सुखकर। क्लेश कटे मन हो उजियारा। अनेकान्त दृष्टि अपनाकर ॥ झण्डा ऊँचा रहे हमारा॥ मुक्ति हेतु संयम तन धर कर। जैन ध्वज पचरंगा प्यारा। वीतराग को शीश नमनकर ।। झण्डा उँचा रहे हमारा॥1॥ सुभाष-शकुन का हो निस्तारा । आओ सहधर्मी गण आओ। झण्डा ऊँचा रहे हमारा॥ जैन धर्म के नित गुण गाओ॥ जैन ध्वजः पचरंगा प्यारा। सत्य अहिंसा को अपनाओ। । झण्डा ऊँचा रहे हमारा ॥३॥ साहित्य प्रकाशन साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में वीर सेवा मन्दिर ने लगभग पचास महत्वपूर्ण ग्रन्थों को प्रकाशित किया है। इनमें जैन लक्षणावली के तीन भाग, पुरातन जैन वाक्य सूची, जैन विविलोग्राफी (अंग्रेजी) दो भाग, युगवीर निबन्धावली, जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह के दो भाग, जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, जिनशासन के विचारणीय प्रसंग, जरा सोचिए आदि अनुसंधान की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पं. पदमचंद शास्त्री का निष्कंप दीपशिखा एवं मूल जैन संस्कृति अपरिग्रह चिन्तनधारा में पुनः चिन्तन को बलात् विवश कर देते है। महत्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रकाशन के साथ-साथ संस्था ने अंग्रेजी भाषा में वैरिस्टरPage Navigation
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