Book Title: Anekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अध्यात्म-पद अब मेरे समकित साबन आयो। बीती कुरीति मिथ्यामति ग्रीषम, पावस सहज सुहायो।।
।। अब. ।। अनुभव दामिनी दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो। बोलैं विमल विवेक पपीहा, सुमति सुहागिन भायो।
। अब.।।
गुरु धुनि गरज सुनत सुख उपजै, मोर सुमन विहसायो। साधक भाव अंकूर उठे बहु, जित तित हरष सवायो।।
।। अब.।। भूल धूल कहि मूल न सूझत, समरस जल भर लायो। भूधर को निकसै अब बाहिर, निज निरचू घर पायो।।
।। अब.।।
-कविवर भूधरदास
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