Book Title: Anekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 5
________________ श्री महावीर स्वामी और हम (१) वे थेविश्व-व्यापी-विकलता विलोक वीर वर्द्धमान, अस्त-प्राणि-त्राण हेतु हृदय में अधीर थे। लेकर जग से विराग, पंचेन्द्रिय-विषय त्याग, कर्म दस्यु-दलन बने अविचल सुधीर थे। सर्वसमभावी, सर्वत्यागी, सर्व हितकारी, सर्व दृष्टिकोणों से विचारक गंभीर थे। प्रात्म-पूर्णता के प्रभावक, प्रकाश-पुंज, वीतरागी सर्वज्ञाता स्वामी महावीर थे। और प्राजविश्व को विकलता का भान तो कहां से हो, देश प्रो समाज का न रंचमात्र ध्यान है। पंचेन्द्रिय विषय त्याग बात बहुत दूर रही, भक्ष्याभक्ष्य-भक्षण तक का रहा नहीं ज्ञान है ।। सर्व समभावी सर्वत्यागी प्रभु थे परन्तु, काला धन संचय में आज सम्मान है। खा रहा समाज को दहेज का दानव दुष्ट, हए अर्थलोलुपो, अहिंसक जवान हैं ।। तब क्या करें-? वीर की जयंती मनाना है सार्थक तभी, वीर के जीवन से प्रकाश कुछ पावें हम । खान पान, रहन सहन सात्विक पवित्र होवे, धार्मिक गृहस्थ जैसा जीवन वितावें हम ।। दीन दुखियों की दशा देख मन होवे द्रवित, स्वार्थत्याग "कौशल" वात्सल्य अपनावें हम । दूर कर द्वेष दम्भ, दयाहीनता, दहेज, नैतिकता नाव पतवार बन जावें हम ।। होरालाल जैन 'कौशल' दीन दुखिया त्याग "कौशाहीनता, दहे

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