Book Title: Anekant 1954 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 2
________________ विषय-सूची ३०३ 1. श्री शारदा स्तवनम्-भ. शुभचन्द्र [२० परमानन्द जैन शास्त्री ३ २. जन्म जाति गर्वायतम्- ['युगवीर' ३७४ ७. जैन धर्म और जैन दर्शन३. कविवर भूधरदास और उनकी विचार धारा [श्री अम्बुजाक्ष सरकार एम.ए.वी.एल. ३२२ [पं. परमानन्द जैन शास्त्री ३०५ ८. उज्जैनके निकट प्राचीन दि. जैन मूर्तियाँ४. श्री बाहुबलीकी आश्चर्यमयी प्रतिमा [बा. छोटेलाल जैन ३२७ [श्राचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि ३.१ १. श्रमणका उत्तर लेख न छापना- ....... ३२८ ५. गरीबी फ्यो -[स्वामी सत्यभक्त संगभसे) ३१४ १०. श्री जिज्ञासा पर मेरा विचार-टाइटिल पे०३ ६. हमारी तीर्थ यात्रा संस्मरण [ चुल्लक सिद्धि सागर ३३० मेरीभावनाका नया संस्करण मेरोभावना की बहत दिनोंसे मांगे पारही थीं, अतः वीरसेवामन्दिरने मेरीभावनाका यह नया संस्करण ३२ पौंडवे बढ़िया काग़ज पर छाप कर प्रकाशित किया है। जो सज्जन बांटनेके लिये चाहें उन्हें५) रुपया सैकड़ाके हिसाबसे दी जावेंगी। पोस्टेज खर्च अलग देना होगा। एक प्रतिका मूल्य -) एक माना है। मैनेजर वीरसेवामन्दिर, ग्रन्थमाला, जैनम्यूजियमकी आवश्यकता जैन आर्ट-गैलरी देहलीमें किसी उचित स्थान पर एक जैन म्यूजियमकी दिल्लीमें किसी योग्य स्थानपर जैसे लाल मन्दिर या अत्यन्त आवश्यकता है जिसमें पुरातत्त्वकी दृष्टिसे सब नई दिल्लीमें एक 'जैन पार्ट-गैलरी' की अत्यन्त आवश्यकता है। जिसमें जैन आर्टको सर्वोत्तमरूपसे प्रदर्शित किया जाय । सामग्री एकत्रित की जाय । अाशा है समाज पूरा ध्यान देगा समाजको इसपर विचारकर शीघ्रही कार्यरूपमें परिणत करना वरना वीरसेवामन्दिको इस कमीकी पूर्ति करनी चाहिए। चाहिए । अथवा वीरसेवामन्दिर जो अपना भवन बनवानेका १८-३-५४ ] श्रायोजन करे उसे इस लक्ष्यकी ओर ध्यान देना चाहिए। -पन्नालाल जैन अग्रवाल -पन्नालाल जैन अग्रवाल अनेकान्तकी सहायताके सात माग (1) अनेकान्तके 'संरक्षक' तथा 'सहायक' बनना और बनाना । (२) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनना तथा दूसरोंको बनाना। (३) विवाह-शादी आदि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजना तथा भिजवाना। (४) अपनी ओर से दूसरोंको अनेकान्त भेट-स्वरूर अथवा फ्री भिजवाना; जैसे विद्या-संस्थाओं, लायबेरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन-अजैन विद्वानोंको। (५) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमें देनेके लिये २५),५०) आदिकी सहायता भेजना। २५ की सहायतामें १० को अनेकान्त अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। (६)अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें देना तथा दिलाना । (७) लोकहितकी साधनामें सहायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको प्रकाशनार्थ जुटाना । सहायतादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पता:नोट-दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोंको मैनेजर 'अनेकान्त' - 'अनेकान्त' एक वर्ष तक भेंटस्वरूप भेजा जायगा। वीरसेवामन्दिर, १, दरियागंज, देहली । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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