Book Title: Anekant 1953 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 9
________________ मुख्तार श्री जुगलकिशोर जी की अनुपस्थिति में उनका " समयसार की' १२वीं गाथा श्रीकानजी स्वामी" नामक लेख गत किरण में प्रसादिकी असावधानीके कारण कुछ अशुद्ध छप गया है 'जिसका भारी खेद है' । श्रवः विराम चिन्हों, हाइकनों तथा विन्दु विसर्गादिकी ऐसी साधारण अशुद्धियोंको छोड़कर सिन्हें पाठक हमें अवगत कर सकते हैं । दूसरी कुछ अशुद्धिय का संशोधन नीचे दिया जाता है । पाठकजन अपनी-अपनी अनेकान्त' प्रतियों में उन्हें ठीक कर लेनेकी कृपा करें। साथ ही, पृष्ठ १८४ के अन्तमें 'शेष पृष्ठ २०३ पर और पृष्ठ १०३ के 'पृष्ठ १८४ से श्रागे' ऐसा ब्रकिटके भीतर बना प्रारम्भ में लेवें : पृष्ठ, पंक्ति अशुद्ध १७८, ३३ क्रभंग क्रमसे १७३ ३१ १८० २५. १८१ ३३ १८३ २८ १८३ ३६ १८३ ३७ का. २,१ २३ .. " " 51 १८४ " " .. " ,, २४, २५ " / 39 ४. २०६१ ६ १३ साथ रहा १६ समयका २८ परिशिष्ट में " " १८ जकि ,,, १६ ३३ अन्तः का. २२ ग्यायके असत्य असा कल्पना भी कल्पना थी ) १०१ १४१ १७० जिया वहिं जीविद जिसके सम्वन्ध भवनो है ४ ६ Jain Education International निश्चय शुद्ध 'क्रमभंग कमसे कम अनुवयगण पडिक्क विशेष १६३ जिणवरेहिं १६८ जीवद जिनके सम्बद्ध भगवचो रहा है साथ संयमका परिशिष्टों अन्त न्यायको जबकि निश्चयनय संशोधन अनुष्पवण पाढिक्क (विशेष) 39 " .. २१० 78 १६ ,,,,, २५ ,,,, ३६, ३७ अकल्पित एवं प्रतिष्ठित ( अकल्पित एवं प्रतिष्ठित ) क्रा० २,७ 99 39 66 ११०.०२.१ इसी पृष्ठ २११ " का० २, 99 ལྗིད 39 99 ष श्रीकानजी स्वामी मगन 'जिनशासन नामक' के छपने में भी कुछ अदियों हो गई है जिनमें से बिन्दु विसर्गादिकी वैसी साधारण अशुद्धियों को भी छोड़कर शेष अशुद्धियोंका संशोधनं नीचे दिया जाता है। उन अशुद्धियोंको भी पाठक अपनी अपनी प्रतियोंमें ठोक कर की कृपा करें : पंक्ति १२,२३ १४ : २० 99 धौग्य में रहते हैं २ 99 २१२ का०२, For Personal & Private Use Only बोधको अद्वितीय है अद्वितीय है - धौष्य ये रहते हैं, अलग अलग रूपमें ये द्रव्य (सत्- के कोई लक्ष्य नहीं होते और इसलिये दोनों मोष वाली मूलनय विरोधको शासन रूड़ अवस्थामें ३० (मोक्ष वाला शासनारूढ़ अवस्था जो पांच शुन जैनशासन जिनशासन जिनशासन हो जैनशासन हो जनधर्म है धर्म ! विज्ञानधर्म विज्ञानय विकारको विकारकी प्रधानता में प्रधानतामें वीतरागता करता निमित्त उसीने कराता निमित्त उसीने जैन शासनको देखा है और वही -प्रकाशक 7 www.jainelibrary.org

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