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किरण ७ ]
"विशालकीर्तिभी रहे हैं। कोल्हापुरसे चलकर हम लोग स्वनिधि पहुँचे ।
स्वनिधि दक्षिण प्रांतका एक सुप्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र है । यहां चार मन्दिर व एक मानस्तम्भ है । मन्दिर के पीछे अहाते की दीवाल गिर गई है जिसके बनाये जानेकी आवश्यकता है। यहां लोग अन्य तीर्थक्षेत्रों की भांति मानमनौती करनेके लिये आते हैं। उस समय एक बरात आई हुई थी, मन्दिरों में कोई खास प्राचीन मूर्तियां ज्ञात नहीं हुई। यह क्षेत्र कब और कैसे प्रसिद्धि में आया । इसका कोई इतिवृत्त ज्ञात नहीं हुआ । हम लोग सानंद यात्रा कर बेलगांव और धारवाड होते हुए हुबली पहुँचे । और हुबलीसे हरिहर होते हुए हमलोग द्रावणगिरि पहुँचे । सेठ जीकी नूतन धर्मशाला में उहरे । धर्मशाला में सफाई और पानीकी अच्छी व्यवस्था है । नैमित्तिक क्रियाओं से निवृत्त होकर मंदिरजी में दर्शन करने गये। यह मंदिर अभी कुछ वर्ष हुए बनकर तय्यार हुआ है । दर्शन-पूजनादि करके भोजनादि किया और रातको यहां ही आराम किया, और सबेरे चारबजे यहांसे चलकर एक बजेके करीब आरसीकेरी पहुँचे, वहाँ स्नानादिसे निवृत्त हो मन्दिरजी में दर्शन किये । पार्श्वनाथकी मूर्ति बड़ी ही मनोश है। एक शिला लेख भी कनाड़ी भाषामें उत्कीर्ण किया हुआ है। यहां समय अधिक हो जानेसे मीठे पानीके नल बंद हो चुके थे,
हमारी तीर्थयात्रा के संस्मरण
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श्रतः खारा पानीका ही उपयोग करना पड़ा। और भोज नादिसे निवृत्त हो कर ३ बजेके करीब हमलोग चन्नराय
के लिए चलदिये । और ७॥ बजेके करीब चराय पट्टन पहुँच गए। और चंनराय पट्टनसे ८॥ बजे चलकर बजेके करीब श्रवणबेलगोल (श्वेतसरोवर) पहुँच गए, रास्तेचलते समय श्रवणबेलगोल जैसे २ समीप श्राता जाता था। उस लोकप्रसिद्धमूर्तिका दूरसे ही भव्य दर्शन होता जाता था । और गोम्मटेश्वर की जय के नारोंसे प्रकाश गूंज उठता था रास्तेका दृश्य बड़ाही सुहावना प्रतीत होता था । और मूर्तिके दूर से ही दर्शन कर हृदय गद्गद् हो रहा था। सभी के भावोंमें निर्मलता, भावुकता और मूर्तिके । समीपमें जाकर दर्शन कर अपने मानवजीवनको सफल बनानेकी भावना अंतर में स्फूर्ति पैदा कर रही थी, कि इतनेमें श्रवण बेलगोल श्रा गया । और मोटर निश्चित स्थान पर रुकगई । और सभी सवारियाँ गम्मटदेवकी जयध्वनिके साथ मोटरसे नीचे उतरीं । और यही निश्चय हुआ कि पहले ठहरनेकी व्यवस्था करलें बादमें सब कार्योंसे निश्चिंत होकर यात्रा करें। अतः प्रयत्न करने पर गाँव में ही एक मुसलमानका बड़ा मकान सौ रुपये के किराये में मिल गया और हमलोगोंने ११ बजे तक सामानचादिकी व्यवस्थासे निश्चित होकर स्थानीय मन्दिरोंके दर्शनकर श्राराम किया । क्रमशः परमानन्द जैन
विवाह
और दान
श्रीलाला राजकृष्णजी जैनके लघु भ्राता लाला हरिश्चन्द्रजी जैनके सुपुत्र बाबू सुरेशचन्द्रका विवाह मथुरा निवासी रमणलाल मोतीलालजी सोरावाओं की सुपुत्री सौ० सुशीला कुमारीके साथ जैन बिधिसे सानन्द सम्पन्न हुआ । वर पक्षकी ओरसे १००० ) का दान निकाला गया, जिसकी सूची निम्न प्रकार है :
१०१) वीर सेवा मन्दिर, जैन सन्देश, ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम, मथुरा, अग्रवाल कालेज मथुरा अग्रवाल कालेज मथुरा, अग्रवाल कन्या पाठशाला मथुरा प्रत्येक को एक सौ एक ।
५१) वाली संस्थाएं स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस, उदासीनाश्रम ईसरी, अम्बाला कन्या पाठशाला, समन्द्रभद्र विद्यालय २५) जैन महिलाश्रम, देहली। अग्रवाल धर्मार्थं श्रौषधालय, मथुरा, गौशाला मथुरा प्रत्येक को २५ )
२१) मन्दिरान मथुरा, जयसिंहपुरा, वृन्दावन चौरासी, घिया मंडी, और घाटी । जैन अनाथाश्रम देहली | आचार्य नमि सागर औषधालय देहली हर एक को इक्कीस ।
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जैन मित्र
११) वाली संस्थाएं और पद जैन बाला विश्राम श्रारा, मुमुतु महिलाश्रम महावीर जी, ७) परिन्दोंका हस्पताल, बालमन्दिर, देहली । ५) अनेकान्त, जैन महिलादर्श, अहिंसा, वीर, जैन गजट देहली, प्रत्येक को पांच । ४) मनियाडर फीस । बीरसेवार्मान्दरको जो १०१ ) रुपया विल्डिंग फंडमें और अनेकान्त को ५) रुपया जो सहायतार्थं प्रदान किये हैं । उसके लिये दातार महोदय धन्यवादके पात्र हैं ।
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सूरत ।
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