Book Title: Anekant 1953 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ २३०1 अनेकान्त [किरण . तो आप प्रकांड पण्डित थे। गौतमीयकाव्य एवं कई होता है। गौतमीय काध्यकी प्रशस्तिमें रूपचन्दजीने स्तोत्र श्रादि आपके काव्य प्रतिभाके परिचायक हैं। सिद्धा- अपनेको जोधपुरके महाराजा अभयसिहसे सम्मान प्राप्त न्त-चन्द्रिकावृत्ति आपके व्याकरण ज्ञान एवं गुणमाला करने वाला लिखा है। इन महाराजाका समय १७८१ प्रकरण आदि जैन सिद्धान्तोंके गंभीर ज्ञानको सूचना देते से १५०६ तक का है। प्रशस्तिका वह श्लोक इस हैं। हेमी नाममाला, अमरू शतक, भतृहरि. शतकत्रय, प्रकार है। बघुस्तवन भक्तामर, कल्याणमन्दिर, शतश्लोकी, सन्निपात- तच्छिशिष्योऽभयसिंह नाम नृपते. लब्धप्रतिष्ठा महा । कलिका मादि संकृत ग्रन्थोंकी भाषा टीका आपने राज गाम्भीरार्थ, अहत्शास्त्रतत्वरसिकोऽहम् रूपचन्द्रा हृदयान् स्थानी व हिन्दोभाषामें की। प्रथम वार भाषाटीका हिन्दी प्रख्यातापर नाम रामविजयो, गम्छेशदत्ताज्ञयाः । गय में लिखी गई है इससे प्राकृत संस्कृत हिन्दी व काव्ये कार्यमिमं कवित्व कलया श्रीगौतमीये शुभम् । राजस्थामी इस चारों भाषाओंके श्राप ज्ञाता व लेखक सिद्ध है। काव्य प्रतिभा-प्रस्तुत काव्य सौका है इसकी टीका आपकी विद्यमानतामें ही क्षमाकल्याणने बनानी प्रारम्भ की व्याकरण, कोश, काव्य, वैद्यक और जैन सिद्धान्तके थी और उसकी पूर्णाहुति आपके स्वर्गवास होनेके बाद विद्वान होनेके साथ साथ आपका ज्योतिष सम्बन्धि ज्ञान भी हुई । यह ग्रन्थ टीका सहित छप चुका है। इस ग्रन्थकी उल्लेखनीय हैं। मुहूर्त मणिमाला व विवाह पटल आपके प्रस्तावनामें पण्डित नारायणराम आचार्य काम्यतीर्थने इस ज्योतिषके ग्रन्थ हैं। आपके प्रशिष्य रामचन्द्र के रचयिता काव्यकी प्रशंसा करते हुए लिखा है। आपके स्तुति अष्टकमें आपको षट्शास्त्रवादजयिका, प्रकृतमिदं काव्यमनेनैवोद्देश्येन जैनसारस्वतभांडागारे अष्टावधान करने में कुशल, इच्छालिपिके आविष्कारक, रत्नमिव चमत्कुरुते । जैन संप्रदायं प्रतिप्रमेयानुन्मखी कतुम् सकल समस्त वाङ्मय पारंगत, जीवनपर्यन्त, शीलधारक अहिंसादयावतानुगामिनं श्रद्धानं दृढीकतु मेव च कवि सौम्यमूति प्रादि विशेषणोंसे युक्त बतलाया है। गगनचन्द्रेण श्रीमतापाठकेन रूपचंद्रण तदिदं काव्यउपाध्याय पद मुपानिबद्धम् । नामतस्तदिदं काम्यम् , किन्तु जैनसंप्रदाय श्रापकी विद्वत्ताके कारण ही प्राचार्य जिनलामसूरिने रहस्यबोधने प्रमाण ग्रंथा, वादग्रंथ महाकाव्यम् सिद्धान्तसंवत् १८१७ से पूर्व पापको उपाध्याय पदसे अलंकृत किया बोधने सम्यक् प्रभवति । था। खरतरगच्छकी परम्परा अनुसार जिस समयमें जो 'काव्य गगन रवैः श्री रूपचन्द्र कदै कवितानि गुम्फन उपाध्याय सबसे अधिक दीक्षा पर्यायमें वृद्ध होता है। उसे पाटव तथा विद्यते येन हि क्लिष्टोऽपि विषयो नीरसोपि च महोपाध्याय लिखा जाता है। आपने लंबी आयु पाई और वयों लोकानां हृदयावर्जनक्षमो भवति । ऋतु उपवनादि छोटी उम्रमें ही दीक्षा लेनेके कारण चारित्र पर्याय भी खूब वर्णने तु कवेर्मश्ररा रचनास्त्येव, परं सिद्धान्त तत्त्वबोधनेपाला । अतः आप अपने समयके महोपाध्याय पद पर प्रति- ऽपि सैव कवे शैली एकान्तभावेन प्रचंडनीतिमहदेव ष्ठित हुये। गोरवं कथयितुः। ॐ बिहार - राजस्थानी भाषाके काव्योंमें आपकी चित्रसेन यमावति - आपका विहार प्रधानतया बीकानेर, जोधपुर, जैसल- रास (रचना सम्बत् १८१४ बीकानेर) नेमिनाथरासो, मेर राज्यमें हुआ। बीकानेर जोधपुर, पाली, सोजत, गौडीछन्द, प्रोशवालरास, फलोदी स्तवन, आबूस्तवन, विवहावास, कालाकुम्ता बीदासर आदि स्थानों में आपके समुद्रबंध कवित्त आदि उल्लेखनीय हैं। जिन सुख सूरि रचे हुये ग्रन्थ उपलब्ध हैं। मजलश हिन्दीभाषामें तुकान्त गद्यकी विशिष्ट रचना जिन सुखसरि मजलस संवत् १७७२ में मापने बनवाई है। पापकी ज्ञात समस्त रचनाओंकी नामावली भागे दी है। प्रापको ज्ञात समस्त रचनामा जिसमें उन्शब्दोंकी प्रधानता है। 'भक्ति सूरिसिंह चले जायेगी। बन्द पाएकी पंजाबी भाषाकी रचना है। इन दोनों रच- * लेख में संस्कृत पद्य और गय बहुत भएद्ध रूपमें है नामोंसे भापका बिहार, पंजाब और सिंधमें होना भी सिद्ध उसे यहां उसी रूपमें दिया जा रहा है। -प्रकाशक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28