Book Title: Anekant 1953 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 24
________________ २३६ ] अनेकान्त [किरण ७ --- पश्चिम मील दूर बीडनामक स्थानपर किया कोल्हापुरसे उत्तरमें दस मील दूर वर्ती एक नगर है करता था । जिसका नाम वदगांव है। यहां एक जैन मन्दिर है। जिसे ईसाकी १२वीं शताब्दीमें कोल्हापुरमें कलचूरियोंके पादप्पा भग सेठीने सन् १६६६ में चालीस हजार रुपया साथ जिन्होंने कल्याणके चालुक्योंको पराजित कर दक्षिण खर्च करके बनवाया था। देशपर अधिकार करलिया था। चालुक्यराजामौके साथ इसी तरह कोल्हापुर स्टेटमें और भी अनेक ग्रामों में शिलाहार राजाओंका एक युद्ध हुआ था। उस समय सन्- प्राचीन जैन मन्दिरोंके बनाये जानेके समुल्लेख प्राप्त हो १७६ (विक्रम सं० १३१४) से १२०६ (वि० सं० १३. सकते हैं। कोल्हापुर और उसके मास-पासमें कितनेही १४ में शिलाहारराजा भोज द्वितीयने कोल्हापुरको अपनी शिलालेख और मूर्तिलेख है जिनका फिर कभी परिचय राजधानी बनाया था। और वहमनी राजाओंके वहाँ पाने कराया जावेगा। तक कोल्हापुर में उन्हींका राज्य रहा। इस नगरमें चार शिखर बंद मंदिर हैं और तीन चैत्या. इस प्रदेशपर अनेक राजवंशोंने-अश्वभृत्य, कदम्ब, लय है । दिगम्बर जैनियोंकी गृह संख्या दिगम्बर जैन राष्ट्रकूट, चालुक्य, और शिलाहार राजाओंने-राज्य किया डायरेक्टरीके अनुसार २०१ और जन संख्या १०४६ है। है। चालुक्यराजाओंसे कोल्हापुर राज्य शिलाहार राजाओं वर्तमानमें उक संख्यामें कुछ हीनाधिकता या परिवर्तन ने छीन लिया था। १३वीं शताब्दीमें शिलाहार नरेशोंका होना सम्भव है । शहरमें यात्रियोंके ठहरनेके लिये दो धर्मबत्न अधिक बढ़ गया था, इसीसे उन्होंने अपने राज्यका शालाएं हैं जो जैन मन्दिरोंके पास ही है । एक दिगम्बर यथेष्ट विस्तार भी किया । ये सब राजा जैनधर्मके उपासक नैन बोडिंग हाउस भी है, उसमें भी यात्रियोंको ठहरनेकी थे। इन राजाओंमें सिंह, भोज, बल्लाल, गंडरादित्य, सुविधा हो जाती है। विजयादित्य और द्वितीय भोज नामके राजा बड़े पराक्रमी जैन समाजके सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् डाक्टर और वीर हुए हैं जिन्होंने अनेक मंदिर बनवाए और ए. एन. उपाध्ये एम. ए. डी. लिट् ठक्त जैन बोर्डिङ्ग उनकी पूजादिके लिए गांव और जमीनोंका दान भी हाउस में ही रहते हैं। आप स्थानीय राजाराम कालिजमें दिया है ! प्राकृत और अर्धमागधीके अध्यापक हैं । बड़े ही कोल्हापुरके 'आजरिका' नामक स्थानके महामण्ले- मिलनसार और सहृदय विद्वान हैं, जैन साहित्य और श्वर गण्डरादित्यदेवद्वारा निर्मापित त्रिभुनतिलक नामक इतिहासके मर्मज्ञ, सुयोग्य विचारक, लेखक तथा अनेक चैत्यालयमें शक सं० ११२७ (वि. स. १२६२) में ग्रन्थोंके सम्पादक है। आप अध्यापन कार्यके साथ-साथ मूलसंघके विद्वान मेषचन्द्र विद्यदेवके द्वारा दीक्षित सोम साहित्य सेवामें अपने जीवनको लगा रहे हैं । श्रीमुख्तार देव मुनिने शब्दार्शवचन्द्रिका नामक वृत्ति रची थी, जो साहब और मैंने आपके यहां ही भोजन किया था । आप प्रकाशित हो चुकी है। उस समय अन्य कार्य में अत्यन्त व्यस्त थे, फिरभी आपने शिलाहार राजा विजयादित्यके समयका एक शिला चर्चाके लिये समय निकाला यह प्रसन्नता की बात है। लेख वमनी ग्राममें शक सम्वत् १०७३ वि० सं० १२०८ मापसे ऐतिहासिक चर्चा करके बड़ी प्रसन्नता हुई। समाजका प्राप्त हुआ है, जो एपिग्राफिका इंडिकाके तृतीयभागमें को आपसे बड़ी प्राशा है। आप चिरायु हों यही हमारी मद्रित हना है, यह लेख ४४ लाइनका पुरानी कनदी मंगल कामना है। संस्कृत मिश्रित भाषामें उत्कीर्ण किया हुआ है, जिसमें कोल्हापुरमें भट्टारकीय एक मठ भी है, और भट्टारकबतलाया गया है कि राजाविजयादित्यने चोडहोर-काम- नी भी रहते हैं। उनके शास्त्रभंडारमें अनेक ग्रन्थ हैं। गावुन्द नामक ग्रामके पार्श्वनाथके दिगम्बर जैन मन्दिरकी अभी उनकी सूची नहीं बनी है। केशववर्णीकी मोम्मटअष्टद्रग्यसे पूजा व मरम्मतके लिये नावुक गेगोल्ला जिलेके सारको कर्नाटकटीका इसी शास्त्रभंडारमें सुरक्षित है, मूदलूर ग्राममें एक खेत और एक मकान श्रीकुन्दकुन्दाम्बवी और भी कई ग्रन्थों की प्राचीन प्रतियां अन्वेषण करने पर श्रीकुलचन्दमुनिके शिष्य श्रीमाधनन्दिसिद्धांत देवके शिष्य इस मंडार में मिलेंगी । यहाँका यह मठ प्राचीन समयसे श्रीबाईनन्दि सिद्धान्तदेवके. चरम भोकर दान दिया। प्रसिद्ध है। यहां पर पं. माशापरजीके शिष्य वादीन्द्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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