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हमारी तीर्थ यात्रा संस्मरण
(गत किरण छः से भागे ] कोल्ह पुर दक्षिण महाराष्ट्रका एक शक्तिशाली नगर कई शिलालेख पाये जाते हैं, जो जैनियोंके गत गौरवके रहा है इस नगरका दूसरा नाम शुल्लकपुर शिलालेखोंमें परिचायक हैं। उनसे उनकी धार्मिक भावनाका भी संकेत बल्लिखित मिलता है। कोल्हापुरका प्रतीत गौरव कितना मिलता है। ये शिलालेख, मूर्ति लेख मन्दिर और प्रशसमृद्ध एवं शक्ति सम्पन्न रहा है इसकी कल्पना भी आज स्तियाँ श्रादि सब पुरातन सामग्री जैनियोंके अतीत गौरवकी एक पहेली बना हुआ है। कोल्हापुर एक अच्छी रियासत स्मृति स्वरूप हैं। पर यह बड़े खेदके साथ लिखना पड़ता थी जो अब बम्बई प्रान्तमें शामिल कर दी गई है। यह है कि कोल्हापुर राज्यके कितने ही मन्दिरों और धार्मिक नगर 'पंचगंगा नदीके किनारे पर बसा हया है। और स्थानों पर वैष्णव-सम्प्रदायका कब्जा है अनेक आज भी समृद-सा लगता है । परन्तु कोल्हापुर स्टेटके मन्दिरोंमें शिवकी पिण्डी रख दी गई है। ऐसा उपद्रव कब मूर्ति और मन्दिरोंके वे पुरातन खण्डहरात तण साम्प्रदा- हुश्रा इसका कोई इतिवृत्त मुझे अभीतक ज्ञात नहीं हो यिक उथल-पुथल रूप परिवर्तन हृदयमें एक टीस उत्पन्न सका । कोल्हापुरसे ५ मील अलटाके पास पूर्वकी ओर एक किये विना नहीं रहते, जो समय-समय पर विद्यार्थियों द्वारा प्राचीन जैन कालिज ( Jain College) था जिस पर उत्पातादिके विरोध स्वरूप किए गए हैं। कोल्हापुर स्टेटमें ब्राह्मणोंने अधिकार कर लिया है। कितने ही कलापूर्ण दिगम्बरीय मन्दिर शिव या विष्णु इसी तरह अंबाबाईका मन्दिर, नवग्रह मन्दिर और मंदिर बना दिये गए हैं। और कितने ही मन्दिर और शेषशायी मन्दिर में तीनों ही मन्दिर प्रायः किसो समय मूर्तियाँ नष्ट-भ्रष्ट करदी गई हैं। कोल्हापुर कितना प्राचीन जैनियोंकी पूजाको वस्तु बने हुए थे। इनमेंसे अंबाबाईका स्थान है इसका कोई प्रमाणिक उल्लेख अथवा इतिवृत्त मन्दिर पद्मावती देवीके लिए बनवाया गया था । कोल्हामेरे अवलोकन में नहीं पाया । परन्तु सन् १८८० में पुरके उपलब्ध मन्दिरोंमें यह मन्दिर सबसे बड़ा और एक प्राचीन बड़े स्तूपके अन्दर एक पिटारा प्राप्त हुआ था, महत्वपूर्ण है। यह मंदिर पुराने शहरके मध्यमें है । और जिसमें ईस्वीपूर्व तृतीय शताब्दीके मौर्यसम्राट अशोकके कृष्णपाषाणका दो खनका बना हुमा है। यहांके निवासी समयके अक्षर ज्ञात होते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जैनीलोग इस मन्दिरको अपना मन्दिर बतलाते हैं। इतना कोल्हापुर एक प्राचीन स्थल है।
ही नहीं, किन्तु मन्दिरकी भीतों और गुंबजों पर बहुतसी इस राज्यको सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कोल्हा नग्न मूर्तियां और लेख अब भी अंकित हैं. जिनसे स्पष्ट पुर राज्यमें इत्तीस हजार जैन खेतिहर (कृषक) हैं. जो प्रमाणित होता है कि यह मन्दिर जैन संघका है। उक्त अपनी स्त्रियोंके साथ खेखीका कार्य करते हैं। ये खेतिहर मंदिरोंके पाषाण स्थानीय नहीं हैं किन्तु वे दूसरे स्थानोंसे अपने धर्मके सर उपासक और नियमोंके संपालक है, बाकर लगाये गये हैं। उनमें कलात्मक खुदाईका काम तथा पदेहीमानदार है। वह अपने मगढोंको अदालतों- किया हुधा है, जो दर्शकको अपनी भोर अकृष्ट किए विना में बहुत ही कम ले जाते है। इतना ही नहीं किन्तु अप- नहीं रहता। राध बनजाने पर भी वे अपना निपटारा पाप ही कर लेते कोल्हापुरके पास-पास बहुतसी सण्डित जैनमूर्तियाँ हैं। वे प्रकृतितः भद्र भोर साहसी एवं परिश्रमी हैं, उन्हें उपलब्ध होती हैं। मुसलमान बादशाहोंने १३वीं वीं अपने धर्मसे विशेष प्रेम है। कोल्हापुर राज्यके पास-पास शताब्दीमें अनेक जैनमन्दिर तोरे और मूर्तियोंको खंडित स्थानों में जैनियोंने अनेक मन्दिर बनवाए है जिनमेंसे किया। जिससे उनका यश सदाके लिए कलंकित हो गया। कितने ही मन्दिर पाज भी मौजूद हैं। यहाँ पर शक संवत् जब म लोग ब्राह्मपुरी पर्वत पर अंबाबाईका मंदिर का १०५८ (विक्रम सम्बत् ११३) से लेकर शक सम्बत् 11- रहे थे। उसी समय राजा जयसिंहने अपना एकविसी, ५८ (विक्रम सम्बत् १२९३) तकके उत्कीर्ण किये हुए बनवाया था। कहा जाता है कि यह सभाको
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