Book Title: Anekant 1953 10 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jugalkishor Mukhtar View full book textPage 4
________________ अनेकान्त किरण ५ १५० ] १४ वीं गाथाए भी वे ही हैं जो वृ० द्रव्यसंग्रह में नं० २२, २७ पर पाई जाती हैं। शेष सब गाथाएँ बृहद् द्रव्य संग्रहसे भिन्न हैं और इससे यह फलित होता है कि लघु द्रव्यसंग्रहमं कुछ गाथाओंकी वृद्धि करके उसे ही बृहद् रूप नहीं दिया गया है बल्कि दोनों को स्वतन्त्र रूपसे ही रचा गया है और इसीसे दोनोंके मंगल पद्य तथा उपसंहारात्मक पद्मभ भिन्न भिन्न हैं . यहां एक बात नोट किये जानेके योग्य है और वह यह कि लघु द्रव्यसंग्रहके मूल में ग्रंथका नाम 'दव्यसंग्रह ' नहीं दिया, बल्कि 'पयस्थलकत्र कराओ गाहाओ' पदोंके द्वार उसे पदार्थोंका लक्षण करने वाली गाथाओं का एक समूह सूचित किया है; जबकि बृहद् द्रव्यसंग्रह में 'दव्वसंग मिरणं' वाक्यके द्वारा ग्रन्थका नाम स्पष्ट रूप से 'दव्यसंह' दिया है। और इससे ऐसा मालूम होता है कि 'द्रव्यसंग्रह' नामकी कल्पना ग्रन्थकारको अपनी पूर्वरचना के बाद उत्पन्न हुई है और उस द्रव्य संग्रह के बाद ही इस पूर्वरचनाको ग्रन्थकार अथवा दूसरोंके द्वारा 'लघुद्रव्यसंग्रह' कहा गया है. चुनांचे इस ग्रन्थकी अन्तिम पुष्पिकामें भी 'लघुद्रव्यसंग्रह' इस नामका उल्लेख पाया जाता है । सारा ग्रंथ अच्छा सरल और सहजबोधगम्य है। यदि कोई सज्जन चाहेंगे तो इसका सुन्दर अनुवाद प्रस्तुत कराकर वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित कर दिया जायगा । -सम्पादक ] ( मूल ग्रन्थ ) हव्व पंच अत्थी सत्त वि तच्चारिण व पयत्था य । संखादा संखादा मुत्ति पदेसाउ संति णो काले || १३|| भंगुप्पाय-धुवन्ता णिद्दिट्ठा जेण सो जिणो जयउ ॥ १ ॥ जावादियं आयासं अविभागी पुग्गल गुवट्टद्ध। जीवो पुग्गल धम्माsधम्मागासो तहेव कालो य । तं खुपदेस जाणे सव्वाणुट्ठाणदा रहं ॥। ४ ॥ दव्वाणि कालर हिया पदेश - हुल्लदो (s त्थिकाया य । २ जीवो गाणी पुगाल-धम्माऽधम्मायासा तहेव कालो य । जीवाजीवासवबंध संवरो णिज्जरा तहा मोक्खो । अजीवा जिराभरणओ गहु मरणइ जो हु सो मिच्छो ॥ तच्चाणि सत्त एदे सपुराण- पावा पयत्त्थाय ||३|| मिच्छत्तं हिसाई कसाय-जोगा य आसवो बंधो। जीवो होइ श्रमुत्तो सदेहमित्तो सचेयरणा कत्ता । सकसाई जं जीवो परिगिरहइ पोग्गलं विविहं ॥ १६ ॥ भोत्ता सोपु दुवो सिद्धो संसारिओ गाणा ||४|| मिच्छत्ताईचाओ संवर जिग भरणइ गिज्जराद से । अरसमरूत्रमगधं अव्वत्तं चेयरणागुणमसद्दं । कम्मारणख सो पुरा अहिलसिओ अणहिलसिओ य ॥ ना अजिंगरगहणं जीवनणिदिट्ठ- संद्वाणं ||२|| कम्म बंधण-बद्धस्स सब्भूदस्तरपणो । वरण-रस-गंध-फासा विज्जते जस्स विरुद्दिट्ठा । सव्वकम्म-विशिम्मुक्को मोक्खो होइ जिरोडिदो ॥ १८ ॥ मुत्त पुग्गलकाओ पुढवी पहुदी हु सो सोढा ||६|| सादाऽऽउ-रणामगोदाणं पयडीओ सुद्दा हवे । पुढवी जलं च छाया चउरिदियविसय कम्म परमाणू । पुराणं तिथयरादी असणं पावं तु आगमे ॥ ६॥ छव्विदभेयं भणियं पुग्गलदव्वं जिरिंगदेहिं ॥७॥ गासइ गर - पब्जाओ उत्पज्जइ देवपज्जयो तत्थ । जीवो स एव सव्वस्सभंगुप्पाय धुवा एवं ॥२०॥ उप्पादनद्ध सा वथूणं होंति पज्जय । एण । दव्र्वाट्ठिएण णिच्चा बोधव्वा सव्त्रजिणवत्ता ।। २१ । एवं गियसुत्तो सट्टा जुदा मरणो गिरु भित्ता । छंडउ रायं रोसं जइ इच्छइ कम्मणो णासं । २। विसएस पवट्टतं वित्त धारेतु अप्पणी अप्पा । झायइ अप्पाणेणं जा सो पावेइ खलु सेयं ॥२३॥ सम्मं जीवादीया गच्चा सम्मं सुकित्तिदा जेहिं । मोहगय केसरीणं णमो मो ठग साहूणं ॥ २४ ॥ सोमच्छले रइया पयस्थ - लक्खणकराउ गादाओ । भव्वुवयाणिमित्तं गणणा सिरिमिचंदे |२२|| परि [] या धम्मो पुग्गल जीवाणगमण-सहयारी तोयं जह मच्छा अच्छंता व सो रोई ||८|| ठाणजुयण अहम्मो पुग्गलजीवाण ठाण-सहयारी । छाया जह पहिया गच्छंता व सो धरई ॥ ॥ अवगा सदा रणजोग्गं जीवादीणं वियारण आयासं । 'जेरहं लोगागासं अलो (ल्लो) गाग/समिदि दुविहं रियादो जो सो कालो हवेइ ववहारो । लोगागासपएस एक्केकाणू य परमठ्ठो ॥११॥ लोयायासपदे से एक्क्क जेट्ठिया हु एक्के का । रयणाणं रासीमित्र ते कालाणू असंखदव्वाणि ॥ १ ॥ खातीदा जीवे धम्माऽधम्मे अणंत आयासे । १०॥ Jain Education International इति नेमिचंद्रसूरिकृतं लघुद्रव्यसंग्रहमिदं पूर्णम् । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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