Book Title: Anekant 1953 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 16
________________ १६२] अनेकान्त किरण ५ 'कर्नाटक कविचरित' के मूल लेखक आर. नरसिंघा भले ही पड़ गई हो लेकिन अभी तक अपेक्षाकृत निदोष चार्य जैन कवियोंके सम्बन्धमें अपने उद्गार प्रकट करते पाई जाती है। निर्दिष्ट समयके हमारे हिन्दी जैन लेखक हुए कहते हैं-'जैनी ही कन्नड भाषाके आदि कवि हैं। तथा कवियोंने भी उक्त धारणाको पूर्णरूपसे अपनाया है आज तक उपलब्ध सभी प्राचीन और उत्तम कृतियां जैन और कुछ भी लिखते समय उन्होंने इस बातका पूरा कवियोंकी ही हैं। प्राचीन जैन कवि हो कन्नड भाषाके ध्यान रखा है कि परम्परागत सिद्धांतोंका कहीं विरोध न सौन्दर्य एवं कान्तिके विशेषतया कारण हैं । पंप, रन, और हो जाय | लिखा सबवे उन सिद्धांतोंको अपनी भाषा पोन्नकी महा कवियोंमें गणना करना उचित ही है। अन्य शैली में ही है। उनकी भाषामें उक्ति वैचित्र्य भले ही हो कवियोंने भी १४वीं शताब्दीके अन्त तक सर्वश्लाध्य बात कासेका गाला आलेली चंपू काव्योंकी रचना की है। कन्नड़ भाषाके सहायक छंद, रहेगा। अलंकार, व्याकरण, कोष आदि ग्रन्थ अधिकतया जैनियांके हिन्दी जैन-साहित्यमें मारमचरित्रकी रचनाकी गई जो द्वारा ही रचित हैं।। इसकी सर्वप्रमुख विशेषता है। आजसं लगभग ३०० वर्ष तिबन्धके पूर्व संस्कृत, प्राकृत तथा अन्य जैन-साहित्य- पूर्व जब कि प्रात्मचरित्र लिखनेकी परिपाटी प्रचलित नहीं जी का इतना परिचय देनेकी आवश्यकता केवल इसीलिये थी ऐसे समयमें ६७५ दोहे और चौपाइयोंमें कविवर बनापडी कि जैनाचार्यों और लेखकोंकी यह दृढतर भावना रही रसीदासजीने अपने ५५ वर्षका प्रात्म-चरित्र लिखा । इसमें है कि प्राचीन प्राचार्योंके सिद्धांतोंसे बिल्कुल विचलित न वह संजीवनी शक्ति विद्यमान हैं जो इसको सदेव जीवित हना जाय । जैनाचार्य और जैन लेखक परम्परागत रख सकती है। यह अपने समयकी अनेक ऐतहासिक सिद्धांतोंको पूर्ण प्रामाणिक और समादरकी रिसे देखते घटनाओंसे श्रोत-प्रोत है। मुसलमानी राज्यके कठोर आये। यही कारण है कि जैन-साहित्यकी धारा छोटी व्यवहारोंका इसमें यथातथ्य चित्रण है। सत्यप्रियता और "The Jain contribution to Tamil स्पष्टवादिताके इसमें सुन्दर दृष्टान्त मिलते हैं। literature form the most precious pos• हिन्दी जैन साहित्यमें पंचतंत्राख्यानटीका और सिंघाsessions of the Tamilians. The largest सन बत्तीसी श्रादि ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं। नारक ग्रन्थों में portion of Sanskrit deraiviations found कविवर बनारसीदासजीका रचा हुआ नाटक समयसार in the Tamil Tanguage was introclu- अपने समयकी एक अपूर्व रचना है । यह आध्यात्मिकताced by the Jains they aftered the Sans- से ओत-प्रोत एक सुन्दर कृति है। निम्नांकित दोहेमें उनकी kirt, which they berrowed in order to आध्यात्मिकताका स्पष्ट. परिचय मिलता है। bring it in accordance with Tamil भेदज्ञान साबू भयो, समरस निमल नीर । euphonic rules. The Kanarese litera- धोबी अन्तर आत्मा, धोवे निजगुण चीर ॥ ture also owes a great deap to the प्रस्तुत ग्रन्थ परम भट्टारक श्रीमदमृतचन्द्रायजीके Jains. Infact they were the origina- संस्कृतकलशोंका पद्यानुवाद है । अनुवाद अत्यन्त सरल tors of it." और सुन्दर है। अर्थात् तामिल साहित्य, जो कि जैन विद्वानोंकी देन हिन्दी जेन-साहित्यमें टोडरमल, जयचन्द, दीपचन्द, है। तामिल भाषाके लिये अत्यन्त मूल्यवान है तामिल- टेकचन्द, दौलतराम, तथा सदासुखदास आदि उच्चकोटिभाषाके जो बहतसे शब्द पाये जाते हैं। यह कार्य जैनियों के गद्य लेखक और टीकाकार हो गये हैं। द्वारा सम्पन किया गया था उनके द्वारा ग्रहण किए गए चरित्र ग्रंथोंमें 'वरांग चरित्र 'जीवन्धरचरित्र' संस्कृत भाषाके शब्दों में ऐसा परिवर्तन किया गया है कि 'पाव पुराण' और 'वमान पुराण' आदि हैं। वे तामिल भाषाकी ध्वनिके अनुरूप हो जावें । छंद-शास्त्रकी उन्नतिमें भी हिन्दी जैन-साहित्यके -जैन शासन-३५.६-३६० कवियोंने विशेष सहयोग प्रदान किया। कविवर वृन्दावनपंकैलाशचन्द्र शास्त्री कृत जैनधर्म पृ० २६१-२६३ दास कृत 'छंद शास्त्र' पिंगलकी एक सुन्दर रचना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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