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धर्म और वर्तमान परिस्थितियाँ
किरण १२ ]
सिक्केका प्रचलन एक धार्मिक नियम है
सिक्केका प्रचलन एक धार्मिक नियम है इस बातकी पुष्टि सिक्केके इतिहास से स्वयं होजाती है। सिक्का किसी व्यापारी द्वारा नहीं चलाया गया है, बल्कि इसे किसी राजा ने चलाया है । इसका रहस्य यह है कि सिक्के की धाक और साख भी जम सकती थी, जब समाजको इस बात का विश्वास हो जाता है कि इसकी धातु निर्दोष और तोल सही है. यदि व्यापारी वर्ग इसका प्रचलन करता तो वह अपनी चालाकीसे उक्त दोनों बातोंका निर्वाह यथार्थरूपमें नहीं कर सकता, जिसका परिणाम सिक्के राज्यमें भी अराजकता होती और थोड़े दिनोंमें सिक्का भी निकम्मी चीज बन जाता । अतः धोखेबाजीको दूर करनेके लिये तथा समाज में अमन-चैन स्थापित करनेके लिये सिक्केके बीचमें राजाको पड़ना पड़ा। इस प्रकार इस धार्मिक नियमने व्यक्ति और समाजकी अनेक समस्याओं की जटिलताको दूर कर दिया । शारीरिक शक्ति विकासक अर्थसम्बन्धी धार्मिक नियमोंका क्रमिक विकास
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यद्यपि मुद्रा जन्म होजानेसे मानवकी शारीरिक शक्तिके विकास में सुविधा प्राप्त हुई है। पर कुछ चालाक और धूर्त व्यक्ति अपने बौद्धिक कौशलसे अन्य व्यक्तियोंके श्रमका अनुचित लाभ उठाकर उनका शोषण करते हैं, जिससे मानव समाजमें दो वर्ग स्थापित हो जाते हैं - एक शोषित और दूसरा शोषक । प्रागैतिहासिक कालसे ही मानव अपनी शारीरिक शक्तिके विकास के लिये धार्मिक नियमोंका प्रचलन करता चला आ रहा है । परिस्थितियों के अनुसार सदा इन नियमोंमें संशोधन होता रहा है। उदयकाल और आदिकाल में जब लोग वैयक्तिक सम्पत्ति रखने लगे थे, अर्थार्जनकेसि, मांस, कृषि, सेवा, शिल्प और वाणिज्यके नियम प्रचलित किये गये थे, जिन नियमों में आबद्ध होकर मानव शारीरिक शक्तिको विकसित करनेके लिये अर्थ प्राप्त करता था ।
'जब-जब आर्थिक व्यवस्था में विषमता या अन्य किन्हीं भी कारणोंसे बाधा उत्पन्न हुई धमने उसे दूर किया । अहिंसा, सत्य, अचौर्य और परिग्रह - परिमाण ऐसे नियम हैं, जो आर्थिक समस्याका संतुलन समाजमें रखते हैं । अर्थ-सम्बन्धी इन धार्मिक नियमोंका पालन राजनीति और समाज इन दोनोंके द्वारा ही हो सकता है । राजनीति सदा आर्थिक नियमों के आधारपर चलती है तथा समाजकी भित्ति इसीपर अवलम्बित है । वर्तमान कालीन आर्थिक नियमोंके विचारविनिमयसे तो यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है ।
पूँजीवादी विचारधाराका धार्मिक दृष्टिकोण
सम्भवतः कुछ लोग पूँजीवादी विचारधाराका नाम सुनकर चौंक उठेंगे और प्रश्न करेंगे कि धर्म के साथ इसका सम्बन्ध कैसा ? यह तो एक सामाजिक या राजनैतिक प्रश्न है, धर्मको इसके बीचमें डालना उचित नहीं । किन्तु विचार करनेपर यह स्पष्ट मालूम हो जायगा कि धर्मका सम्बन्ध आजकी या प्राचीनकालकी सभी आर्थिक विचारधाराओंसे है । यदि यह कहा जाय कि किसी विशेष परिस्थति में कोई आर्थिक विचारधारा धार्मिक नियम है, तो अनु चित न होगा; क्योंकि वह अपने समयमें समाज में शान्ति और व्यवस्था स्थापित करती है । पूंजीवादी परिभाषा
समाजके चन्द व्यक्ति अपने बुद्धिकौशल द्वारा उत्पत्तिके साधनोंपर एकाधिकार कर उत्पादन सामग्रीको क्रियात्मकरूप देनेके लिये मज़दूरोंको नौकर रख लेते हैं। मजदूर अपने श्रम अर्थार्जन करते हैं, जिसके बदले में पूँजीपति उन्हें वेतन देते हैं. परन्तु यह वेतनश्रमकी
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