Book Title: Anantki Anugunj Author(s): Pratap J Tolia Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation View full book textPage 2
________________ 898 अनंत की अनुगूँज चीख और चिल्लाहटों से परे मौन का मुखर होन । और तब गूंजना नीरवता का । अनंत की इस नीरव गूंज से उठती है अनुगूंज । यही सब कुछ तो संजोया है इस आध्या त्मपरक काव्य पुस्तिका में । प्रश्न हैं समाधान हैं लेकिन अनायास ही सब कुछ रहस्यमय हो उठता है । गंतव्य की तलाश है, फिर फिर लौट आने की विवशता है । भ्रान्त भटकन से श्लथ है शरीर लेकिन इस श्रांति में भी प्रज्वलित है आत्मज्योति । एक अक्ष ुण्ण लौ से पथ दीप्तिमान है । अंतर्यात्रा के लिए प्रशस्त पथ है । पथ, जो दौडा जाता है सुदूर तक, अव्याबाध और लगातार चलते रहना यह है नियति । एकाकीपन में अपने से अपनी 'आयडेण्टिटी' की पूछ परख प्रकृति के उपादानों में अपनी खोज और दूसरे ही क्षण अनन्त से जुड़कर सब जगह अवस्थिति का बोध | विवेक, पथ का सजग प्रहरी है ।Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 54