Book Title: Anandghan ni Atmanubhuti 02
Author(s): Kalyanbodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ रे घरियारी बाउरे, मत घरिय बजावे नर शिर बाँधत पाघरी, तुं क्या घरीय बजावे?...१ रे घरियारी बाउ रे... केवल काल कला कले. वैतु अकल पावे: अकल कला घटमें घरी. मुज सो घरी भावे...२ रे घरियारी बाउ रे... आतम अनुभव रस भरी, यामे और न मावे: आनंदघन अविचल कला, विरला कोई पावे...३ रे घरियारी बाउ रे... रे घरियारी बाउ रे, मत घरिय बजावे नर शिर बाँधत पाघरी, तुं क्या घरीय बजावे?...१ रे घरियारी बाउ रे... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32