Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 5
________________ प्रारम्भिाक SAMURATISHRAINITION अन्तर्मन की गहन-गूढ अनुभूत्रियों को व्यक्त करने का वाणी एक स्पष्ट, सरल एवं सहज साधन है। वाणी की उपलब्धि मनुष्य की बहुत बड़ी उपलब्धि है। यदि वाणी न होती, तो मनुष्य की क्या स्थिति होती? क्या वह अन्य पशु-पक्षियों की तरह को छटपटाता भीतर ही भीतर घुट नहीं जाता! मूक मनुष्य की अन्तर्वेदना की कल्पना से ही शायद हम सिहर उठेंगे । वाणी द्वारा मनुष्य अपने सुख-दुख की अभिव्यक्ति करके हृदय को हलका और प्रसन्न रख सकता है। अपने भावों को प्रकट कर वह आत्मसंतोष की सांस ले सकता है। प्राचीन काल से ही वाणी को सरस्वती का रूप माना गया है। वैदिक ऋषियों की उक्ति है - "वघा सरस्वती भिषग्" वाणी सरस्वती रूपा है, जीवन के विकारों को दूर करने के लिए वह कुशल चिकित्सक भी है। प्राचीन विचारक भी कहा करते थे - 'कराग्रे वसते लक्ष्मी जिह्वाग्रे च सरस्वती' - मानव के हाथों में लक्ष्मी का निवास है, और जिला के लिए साक्षात् सरस्वती है, यदि कोई उसकी ठीक साधना कर पाए तो । वाणी के द्वारा ही अतीत को वर्तमान में उपस्थित किया जा सकता है । हजारों लाखों वर्ष पूर्व हुए महापुरुषों के दिव्य जीवन का साक्षात्कार, आज हम उनकी वाणी में ही तो करते हैं। मानव के दैहिक जीवन से वाणी की आयु लम्बी, बहुत लम्बी होती है। और भविष्य, वह भी तो भविष्य द्रष्टाओं की वाणी में ही मुखरिफ होती है। वर्तमान भी वाणी के माध्यम से ही सुदूर भविष्य तक सुरक्षित रह सकता है। वाणी त्रिकाल को स्पर्श करती है, अतीत और अनागत्र का तो मिलनकेन्द्र होने के नाते वाणी एक सुदृढ़ सेतु है। संसार की समस्त ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि में वाणी एक अद्भुत उपलब्धि मानी गयी है। वाणी से उदास्त एक सुवचन-सुभाषित संसार के समस्त रत्नों से भी अधिक मूल्यवान होता है। वास्तव में तो सुभाषित ही सच्चा रत्न है । प्राचीन आचार्यों ने कहा है -

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