Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रतिहार काल में पूजित राजस्थान के कुछ अप्रधान देवी-देवता
डा० दशरथ शर्मा
ईश्वरको सर्वत्र देखने वाले हिन्दू धर्मके लिए सभी पूज्य देव-देवियोंमें ईश्वरत्वकी भावना करना आसान रहा है। चाहे मनुष्य किसी नामसे अपने इष्टदेवका पूजन करे, पूज्य वस्तु वही ईश्वरतत्त्व है । इसीलिए श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कह सके हैं :
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ।। ९.२३ ।। पूजन निष्काम हो तो श्रेष्ठ है । उसीसे कर्मकी हानि, और मुक्तिकी प्राप्ति हो सकती है किन्तु फल प्राप्तिके इच्छुक व्यक्ति प्रायः अनेक देव मूर्तियोंका पूजन करते ही हैं ( ७.२० ); और उन्हें अपने लक्ष्यानुसार ईश्वरीय नियम द्वारा विहित प्राप्ति भी होती है।
प्रतिहार कालमें वैदिक धर्मानुसारिणी जनता प्रायः विष्णु, शिव, सूर्य और शक्तिकी पूजक थी। इनके एकत्वकी भावना उनके हृदयमें दृढ़ मूल हो चुकी थी। अन्यथा यह कैसे सम्भव होता कि पिता एक देवका तो पुत्र अन्य किसी इष्टदेवका पूजन करे ? प्रतिहार-राज देवशक्ति विष्णुका तो उसका पुत्र वत्सराज महेश्वरका भक्त था । वत्सराजके उत्तराधिकारी नागभट द्वितीयने भगवतीका पूजन किया तो उसके उत्तराधिकारी रामभद्रने सूर्यका। रामभद्रका पुत्र सम्राट् भोज भगवती-भक्त था; किन्तु अपने अन्त:पुरमें उसने अपनी रानियोंके लिए भगवान नरकद्विष विष्णुको प्रतिमाका स्थापन किया था। महेन्द्रपाल प्रथमने भी भगवतीकी आराधना की; किन्तु उसका पुत्र विनायकपाल आदित्यका और विनायकपालका पुत्र महेन्द्रपाल द्वितीय महेश्वरका पुजक था।
ब्रह्माका भी यत्र तत्र पूजन वर्तमान था । किन्तु हरिषेणीय बृहत्कथाकोश, कुवलयमाला, जिनेश्वरीय कथाकोशप्रकरण, उपमितिभवप्रपञ्चा आदि जैन ग्रंथोंके साक्ष्यसे यह सिद्ध है कि प्रतिहार-युगमें ब्रह्मापजकोंकी संख्या प्रायः नगण्य थी। अभिलेखादि पुरातात्त्विक सामग्रीके आधारपर भी हम इसी निष्कर्ष पर पहँचते हैं। ब्रह्मा वेदोंके द्रष्टा है। जब वेदों का स्थान प्रायः स्मृतियों और पुराणोंने ग्रहण कर लिया तो सावित्रीपति ब्रह्माके गौरवमें कुछ अपकर्ष होना स्वभावतः निश्चित ही था ।।
किन्तु पुराणोक्त अनेक देवों और देवियोंका पूजन इस समय खूब बढ़ा। इनमें कुछ शिवकुलमें संख्यात है। अमरकोशने शिव और पार्वतीके ठीक बाद गणपतिको लेते हुए विनायक, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, एकदन्त, हेरम्ब, लम्बोदर, गजानन आदि उनके आठ नाम दिए हैं जिससे सिद्ध है कि पांचवीं शताब्दी में गणपतिका स्वरूप प्रायः बही था जो अब है और तद्विषयक अनेक पौराणिक कथाएँ पूरी तरह
१. विष्ण, शिव, सूर्य आदिके प्रधान देवोंके विवरणके लिए Rajasthan Through the Agos देखें। २. पृष्ठ, ६८।
इतिहास और पुरातत्त्व : ३
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