Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्री आगमसुदासिन्यु::: दशमो विभागः अणंतसमणीओ, दाउ सुदालोथणे निसल्ला // 34 // केवलं पप्प सिखाओ, अणादिकालेण गोयमा! संता बंता विमुत्ताओ, जिहंदिउ सध्यभागिरीभो // 39 // धक्काय समारंभा, विरया तिविहेण जातिदंडासवसंयुत्ता, पुरिसकहासंगवजिया // 10 // पुरिससंलावरिरथाओ, पुरिसंगोवंगनिरिक्षणा। निम्ममत्ताउ ससरीरे, अप्परिबदाउ महायसा men भीया धीगभवसहीणं, बहुदुक्खाउ भरसंसराओ नहा / ता एरिसेणं आवेग, दायबा आलोयणा // 32 // पायलिपि काथवं, तह जहएगाहि समणीहि कयं / ण उणं तह आलोएयब्वं, मायारंभण केगई ॥१०॥जह आलोयमाणीयं, पाव. कम्मबुटी भवे / अयंताणाइकालेणं, माथारंभधम्मरोसेणं men कवडालोथ काउंसमणीओ ससल्लाओ। भाभि ओगपरंपरेणं, धरिग्यं पटगिया॥५॥ कासिंचिगोथमाः नामे, साहिमो तं निबोधय / जाउ आलोयमागीओ, भाव. दोसे सुस्तृतरगं, पावकम्ममलमवलियं // 1 // तह संज. मसीलंगाणं, णीसल्लतं पसंसियंतं परमभावबिसाहीए. विणा खणपि नो भवे // 17 // तो गोथमा ! केसिमित्यीयां, चित्तविसोही सुनिम्मला। भवंतरेविनो होही, जेण नीम. . ल्लया भवे // 15 // घरठहमदसमडवालसेहिं सुनचंति केरिसमणीओ / तहवि यसरागभावं, गालोथंनी ण इंति ॥४॥बहुविहनिमय्यकल्लोलमालाउम्कालिगहिणं / वियरंतं के ण ल ज्जा , दुरवगाहमण(भन) सागरं // 30 // तेकहमालोयणं देंत, जासि चित्तंपि नो बसे।स. ल्लज्जा ताणमुदरए, सवंदणीभो खणे स्थणे // 15 // अमिणेह. पीइपुत्वेण धम्मज्झागुल्लसावियं / सीलंगगुणाणेसु, उत्तमेसु धरे। जो // 15 // इत्थीहबंधणा विमुस्कं, गिडकलत्तादिचारगा। सुविसुनसुनिम्मलं चिनं, पीसल्लं सो महायसो // 53 // दो वंदणीभो यदेविदाणं स उत्तमो। दरीणकयोत्थी सवपरिभूय. निरहदाणे जो उत्तमे धरे // 150n णालोएमि अहं समणी, दे वह

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