Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 14
________________ 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎 महानिशीधस-7 * अधयन , [11 / पाहिजहणंतरे तहा // 120 // जणणीएविण दंसेमि, सुसंगुत्तंगोबंगा समणी य केवली / बढ़भवंतरकोडीओ,घोरं गभपरंपरं॥१॥ परियटिंतीए सलई में गाणं चारित्तसंजुयं। माणुसज. म.ससंमत्तं,पावकम्मकवयंकरंता सव्वं भावनीसल्लं, आलोएमि खो खो। पायच्चित्तमणुामि,बीयं तं न समारं. भं // 123 // जेणागर पच्छितं, बाया मणसा य अम्मणा / पुटविदगागणिवाऊहरिथक्राथं तहेव य // 12 // बीयकायसमारंभ, 'बितिचाउयंचिंदियाण य। मुसाणंपिन भासेमि, ससरस्वपि / अदिन्नयं // 125 // न गिण्ह सुमणं तेविण पत्थं मासानि मेह णं। परिग्गहं न काहामि, मुलुत्तरगुणस्खलणं तहा / / 126 // मय. भयकसायदंडेसुं,गुत्तीसमितिदिएसु थ। तह अठारससील. गसहस्साहिरिव्यतणू // 127 // सज्झायज्झाणजोगेसुं,अभिरमं समणिकेवली / तेलोकरक्षणक्वंभधस्सतित्थंकरेग जं तमहं लिंगंधरेमाणी, जइवि हजंते निबीलिय। मझोमज्झीय दो खंडा, फालिज्जामि तठेव य॥१९॥ अह पक्खिय्या. मि दित्तग्गिं, अहवा छिज्जे जई सिरं। तोऽवीऽहं नियमवयभंग, सीलचारितखंडणं // 130 // मणसावी एस्कजम्मकए, कुणं स. माणिकवली / खसरसाणजाईसुं.सरागा हिडिया अहं॥३१॥ विकम्मपि समायरियं, अगं भवभवंतरे / तमेव खरकम्ममहं, पव्यज्जापठिया कुणं // 132 // घोरंध्यारपायाला जाणं कोणी. हरं पुणो। वेश्यि हे माणुसं जम्म, तं च बहवभायणं॥३३॥ अणिचं खणविद्धंसी, बहुदंड दोससंकरं। तथावि इत्थी संआया, सयलतेलोक्कनिदिया॥१३॥ तहावि पावियं धम्मं, णिविघम. णंतराश्यं / ताहं तं न विराहमि, पावदोसे केाई॥१२॥ सिंगार / रागसदिगारं, साहिलासं न चिटिठमो। पसंताएवि दिइट्ठीए, मोतुं धम्मावएसगं३३६॥ अन्नं पुरिस न निल्झायं णालव समणिवली / तं तारिसं महायाव, काउ अक्कहणीययं // 13 // नं सल्लमवि उप्यण्णं, जहदत्तालोयणमणिकेचली। एमार्टि 獎獎獎獎獎獎獎獎獎菱變變變

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