Book Title: Agam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को पइविसेसो नामंआवकहियं ठवणा इत्तरिया दागोजा आयकहिया वा1३1131 (३६) से किं तंदव्यसुयंदव्यसुयं दुविहं पन्नतं० आगमओय नोआगमओय |३२-32 (३७) से किं तं आगपओदव्वसुयं आगपओ दध्वसुयं-जस्स णं सुए ति पदं सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं जाब नो अनुप्पेहाए कम्हा अनुवओगो दव्यमिति कट, नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एनं व्यसुयं जाव कहा जइ जाणए अनुवउत्ते न पवइ से तं आगमओ दव्यसुयं |३३॥3 (14) से किं तं नोआगमओ दव्वसुयं नोआगमओ दव्यसुयं तिविहं पन्नत्तं तं जहाजाणगसरीरदव्यसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर-भवियसरीर-यतिरित्तं दव्यसुयं ।३४१-34 (३) से किं तं जाणगसरीरदव्यसुयं जाणगसरीरदव्यसुयं सुए ति पयत्याहिगारजाणस्स जं सरीरयं वदगय-चुय-धाविय-तं घेव पुब्व भणियं माणियव्यं जाव से तं जाणगसरीरदव्यसुयं ३५1-36 (४०) से किं तं भवियसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्यसुर्य-जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते जहा दव्यावस्स ए तहा भाणियव्वंजाव से तं भविय-सरीरदब्बसुयं ।३६।-30 (४) स किं तं जाणगसरीर-मवियसरीर-यतिरितं व्यसुर्य जाणगसरीर-मवियसरीरवतिरितं दध्वसुयं-पत्तय-पोत्यय-लिहियं अहवा सुयं पंचविहं पत्तं तं जहा-अंडयं बोंडयं कीडपं वालयं वक़्कयंसे किंतं अंडयं अंडयं-हंसगभाइसे तं अंडयं से किंतंबोंडयं बोंडय-फलिहमाइसे तंबोंडयं से किं तं कीडयं कीलयं पंचविहं पनत्तं तं जहा-पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे से तं कीडयं से किं तं वालयं वालयं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा-उण्णिए उटिए मियलोमिए कुतये किसिसे से तंवालय से किं तं वककयं धक्कयं-सणमाइसे तं वकप से तंजाणगसरीरमबियसरीर-चतिरित्तं दव्यसुयं से तं नोआगमओदव्यसुयं से तं दब्बसुयं ।३७-37 (४२)से कितंभावसुयंभावसुयंदुविहं पन्नतंतंजहा-आगमओपनोआगमओया३८-38 (vi) से किं तं आगमओ भावसुयं आगमओ भावसुयं-जाणए उवउत्ते से तं आगमओ मावसुयं ॥३९॥39 (Mr) से किं तं नोआगमओ मावसुयं नोआगमओ मावसुयं दुविहं पनत्तं तं जहा-सोइयं लोगुतरियं 01-40 (५) से किं तं लोइयं मावसुयं लोइयं भावसुयं-जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छदिट्ठीहिं सळंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं तं जहा-पाएं रामायणं हंभीमासुरुत्तं कोडिल्लयं घोडमुहं सगमदियओ कप्पासिय नागसुहमं कणगसत्तरी वेसियं यइसेसियं बुद्धययणं काविलं लोगायतं सद्वितंत मादरं पुराण वागरणं नाडगादि अहवा पावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा से तं लोइयं भावसुयं ।।१।-41 (४) से किं लोगुत्तरिय मावसुयं० ज इमं अरईतेहिं भगवतेहिं उप्पन्ननाणदंसणधरेहि तीय-पडुप्पन्नमणागयजाणएहिं सव्वन्नूहिं सब्वदरिसीहिं तेलोक्कष-हिय-महिय-पइएहि पणीयं दुयालसंगं गणिपिडगं तं जहा-आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विवाहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पाहावागर- णाई विवागसुयं दिष्टिवाओ से तं लोगुतरिय मावसुयं से तं नोआगमओ भावसुयं से तं भावुसयं ।।१।-42 (४७) तस्सणं इमे एगडिया नाणाधोसा नाणावंजणा नामथेजा भवंति।३-31 For Private And Personal Use Only

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