Book Title: Agam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૫ अनुओनदारा (१३३) इंदियाई पारिणामिए जीवे एस णं से नामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिष्फणे कयरे से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिम्फन्ने उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाई इंदियाई पारिणामिए जीवे एसा णं से नामे उवसमिए खड़ए खओवसमिए पारिणामियनिप्फन्ने तत्य णं जेसे एक्के पंचगसंजोए से णं इमे अत्थि नाने उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फन्ने कयरे से नामे उदइए जाव पारिणामियनिष्फण्णे उदइए ति मस्से उवसंता कसाया खइयं समत्तं खओषसमियाई इंदियाई पारिणामिए जीवे एस णं से नामे उदइए जाव पारिणामियनिष्कण्णे से तं सन्निवाइए से तं छनामे । १२६ । - 120 (१६४) से किं तं सत्तनामे सत्तनामे सत्त सरा पत्ता तं जहा ।१२७-१ /- 127-1 (१६५) सजे रिसमे गंधारे मज्झिमे पंचने सरे धेवए चैव नेसाए सर सत्त वियाहिया ||२५||-25 (१६६) एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरडाणा पत्रत्ता तं जहा ॥१२७-२--127-2 (१६०) सखं च अग्गजीहाए उरेण रिसमं सरं कंडुग्गएण गंधारं मज्झजीहाए मज्झिम (१६८) नासाए पंचमं बूया दंतोद्वेगं य धैवतं मुक्रखेवेण नेसायं सराणा वियाहिया (१६९) सत्तसरा जीवनिस्सिया पत्रत्ता तं जहा ।१२७-३/-127-3 (१७०) सचं रवइ मयूरो कुक्कुडो रिसमं सरं हंसो रवइ गंधारं मज्झिमं तु गवेलगा (१७१) अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं सरं छठ्ठे च सारसा कुंचा नेसायं सत्तमं गओ (१७२) सत्त सरा अजीवनिस्सिया पत्रत्ता तं जहा । १२७-४१-127-4 गाव पुत्ताय मित्ताय नारीणं होई वल्लहो (१७७) रिसमेण उ एस सेणावचं घणाणि य यत्यगंधमलंकारं इत्यीओ सयणाणि य (१७८) गंधारे गीतजुत्तिष्णा विजवित्ती कलाहिया हवंति करणो पत्रा जे अण्णे सत्यपारगा ( १७९) मज्झिमसरमंता उ हवंति सुहजीविणो खायई पियई देई मज्झिमसरमस्सिओ (१८०) पंचमसरमंता उ हवंति पुहवीपती सूरा संग कत्तारो अगगणनायगा ||२६|| 26 For Private And Personal Use Only ||२७|-27 11२८11-28 ( १७३) सज्यं रवइ पुयंगो गोमुही रिसभं सरं संखो रवइ गंधारं मज्झिमं पुण झारी ( १७४ ) चउचलणपइद्वाणा गोहिया पंचमं सरं आडंबरो घेवइयं महामेरी य सत्तमं 1|39|1-31 (१७५) एएसि णं सत्तण्डं सराणं सत्त सरलक्खणा पत्रत्ता तं जहा ।१२७-५/- 127-6 (१७६) सज्रेण लहइ वित्तिं कयं च न विणस्सइ 113811-29 ||३०||-30 113311-32 ॥३३॥-93 ||३४||-34 113411-35 ||३६|| 36

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