Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 8
________________ जीर्णता ओइ तेमनी हांसी करे छे, सेमने जन पत्रो शिलामय भाप ले के-"अमे पण तमारी जेवा एक वखत हता, अने समे पण | काळे करीने अमारी जेबा जीर्ण यशो,” विगेरे रूपक कयु छे. पट्टी आयुष्य अने यौवननु अनित्यपणु, मनुष्यभवनी दुर्लभता, ते प्रसंगे | पृथ्वीकायादिकथी प्रारंभी पंचेंद्रिय तिर्यंच भने देव तथा नारकोनी कायस्थितिनो मोटो काळ, मनुष्यभव मळ्या इता भार्यक्षेत्र, अविका इंद्रियपणुं, धर्मश्रवण, श्रद्धा विगैरेनी दुर्लभता बताबी छे. त्यारपछी वृद्धावस्थामां इंद्रियोनी शिथिलता थइ केवी स्थिति थाय के ते सर्व बसाव्यु छे. छेवटे संसारको त्याग करी संयम अंगीकार करनारने समय मात्र पण प्रमाद नहीं करवा अने संयममां द्रढ रहेवा उपदेश माप्यो छे, तथा गौतम गणधस्नु मोजगमन क{ छे. अध्ययन ११ पान २१३-उपदेश पण विवेकीने ज भापी शकायचे, प्रने विवेक बहुश्रुतनी सेवाथी प्राप्त थाय छे. तेथी या अध्ययनमा बहुश्रुतनी सेवा करवानें कहे. तेमा प्रथम प्रबहुश्रुत भने बहुतनं लक्षगग कही पछी ते बन्नेनी प्राप्ति शाधी थाय छे ? तेनां कारगो बताव्यां हे, तेमां बहुश्रुतपणाचें मूळ कारण विनय भने अबहुश्रुतपणाचें मूळ कारण प्रविनय होवाथी विनय भने अविनय शाथी प्राप्त थाय छे ? तेनां कारयो षताब्या छे. तेमां भविनीतना क्रोधादिक चौद स्थानो भने बिनीतनां नम्रतादिक पंदर स्थानो बताव्यां छे. त्यारपछी बहुश्रुतनो आचार कही तेने सुशिक्षित प्रश्वादिकनी उपमा पापी प्रशंसा करी छे. तेमां छेक्टे वासुदेव, चक्रवती, इंद्र, मेरु, स्वयंभूरमण समुद्र विगेरेनी उपमा प्रापी के. ते जाणवा योग्य छे. अध्ययन १२ पार्नु २२२-बहुश्रुते पण सप करवामां यत्न कावानो छ, तेथी तपसमृद्धि नामना मा अध्ययनमा हरिकेशबळ मुनिनी कथा कही तपर्नु माहात्म्य बताव्यु ले. तेमां से मुनि पारणाने दिवसे भिक्षा माटे अटन करता एक ब्राह्मणना यज्ञमा गया हता.

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