Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 14
________________ के-"हुं तमारो नाथ थाई, तमो इच्छा प्रमागो भोग भोगवो." पटले मुनिए कह्य के-“हे राजा ! तमे तमारा ज नाथ नथी, तो बीजाना नाथ शी रीते थशो ? " हाई अर्व बधन सांझी अत्यंत विस्मय मिला राजाए पोतानो सैन्य, कोष, परिवार विगेरे वै. | भव यताबी पोतार्नु नाथपणुं सिद्ध कयु, त्यारे मुनिए पण पोतानी गृहस्थाश्रमनी श्रेष्ट समृद्धिन तथा माता, पिता, पत्नी, मित्र विगेरेनुं वर्णन करी नेत्रनी असह्य वेदना यह ते वखते कोइ पण काम लाग्यु नहीं, कोजए नाथपणुं बताव्यु नहीं, एम कहः अनाथपगुं सिद्ध कर्यु छे. श्रा विषय घगो विस्तारथी असरकारक वर्णन्यो छे. पछी नेत्रनी वेदना दूर थाय तो सर्वस्वनो त्याग करी चारित्र लेवानी दृढ़ | धारणा करतां वेदना दूर थइ अने चारित्र लीधुं त्यारे हवे पोताना आत्मानो तथा सर्व प्राणी मात्रनो हुँ नाथ थयो ©, इत्यादिक कही तथा नाथता भने अनाथतार्नु स्वरूप समजावी राजाने सारो उपदेश को चे. पछी राजा प्रसन्न थइ मुनिने खमावी तेनी स्तुति करी पोताने स्थाने गया अने मुनि पण अन्यत्र विचर्या. अध्ययन २१ पानं १२६---प्रनाथपयानो विचार एकांत चर्या विना थइ शकतो नथी, तेथी आ भध्ययनमा समुद्रपाळना दृष्टांतवडे एकांसचर्या वर्णवी छे. तेमां ते समुद्रपाळ पालित नामना श्रावकनो पुब हतो. तेनो जन्म समुद्रमा थयो इतो, तेथी तेनु नाम समुद्रपाळ पायं तु. ते सकळ कळामां निपुण थह युवावस्था पाम्यो, त्यारे ते रुपिणी नामनी कन्याने परण्यो. तेगीनी साथे दोगुंदक देवनी जेम निरंतर ते भोगविलासमा मग्न रहेतो हतो, एकदा पोताना महेलनी बारीमां बेठेलो ते समुद्रपाळ वध्यस्थाने लइ अदाता एक चोरने जोइ वैराग्य पाम्यो. तेथी तरत तेणे माता पितानी रजा लइ चारित्र ग्रहण कयु. पछी तेणे पोताना श्रात्माने शिक्षा प्रापी के-" हे जीव ! महाक्लेश कारक, भयकारक भने महामोह कारक स्वजनादिकना संगनो त्याग करी चारित्रधर्मपर रुचि करी व्रत तथा शीजन

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