Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 10
________________ तथा वे पुगेदितना पुत्रो ५-६. प्रामां प्रथम चे पुत्रोने प्रतिबोध थयो, पढ़ी तेमना मातपिताने थयो भने त्यारपछी राजाराणीने प्रतेबोध थयो. ते वखते पुरोहित तथा तेनी स्त्रीए पुत्रोने घणी गते संसारना झोभमा नांखवा प्रयत्न कर्यो, तो पण तेस्रोए बिलकुल कामभोगनी all इच्छा करी नहीं. ते विषेनो तेमनो संवाद घणो बोधदायक के. छेक्ट ते चारे जगाए दीक्षा लीधी, ते वखते समतुं धन मालिक्रीविनान थवाथी तेने लेवा माटे राजा तैयार थयो, त्यारे राणीए गजाने पुरोहिते वमेला धनने महमा करवानो निषेध करी धर्मनो एपदेश प्रापी प्रतिबोध पमाञ्यो छे. या विषय पण घयो उत्तम बोध श्रापनार छे. वेत्रट राजा भने गणीए पण दीक्षा लीधी. नंते ते छए जीवो मुक्तिने पाम्या. अध्ययन १५ पार्नु २६३.--नियागा रहितपणुं प्राये करीने साधुने ज संभवे हो, तेथी या सभिक्षु नामना अध्ययनमा भिन्तुना गुणो कह्या छ. तेमां रागद्वेष रहित थर, आक्रोश वधादिकने सहन करी, कोइ पण वस्तुपर मूली न रास्त्री, अंत प्रांत भोजन, शय्या, श्रासन विगेरेने सेवी, शीतोष्णादिक परिसहो सहन करी, निरविचार व्रतोर्नु पालन करी, प्रशंसादिकमां आसक्ति रहित थइ, कपायादिको त्याग करी, पंचेंद्रियोना विषयथी निवस थइ, विदामंत्रादिकवडे भाजीविकाने नहीं करी, पूर्वना भने पन्द्रीना परिचयनो त्याग करी, || मिक्षादिक मळवाथी अथवा न मळवाथी हर्ष शोकनो त्याग करी, जे काइ मळे तेनाथी ज संतोष मानी. तथा ज्ञान दर्शन भने चारित्रमांक लीन थइ जे विचरे ते ज साधु कद्देवाय छे. ए विगेरे साधुना प्राचारो बताच्या छे. विभाग बीजो. अध्ययन १६ पार्नु १-साधुना गुग्यो ब्रह्मचर्यथी ज स्थिर रही शके छ, तेथी आ ब्रह्मचर्यगुप्ति नामर्नु अध्ययन कयं दे. तेमां

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