Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 6
________________ पण शरणमूत थतुं नथी. तेथी मोहनिद्रानो त्याग करी अपनत्तपणे भाक्थी आनृत रहे. ए विगेरे उपदेश आप्यो छे. अध्ययन ५ पान १२३---मरण पर्यंत अप्रमादी रहेवार्नु छे तेथी या अध्ययनमां मग्णना भेद बनान्या छे. तेमां मूळ सूत्रमा ज्ञानीनोनुं सकाम मरण अने अज्ञानीनु अकाम मरण एवा ने मुख्य विभाग बतान्या के. अने टीकाकार महाराजे सतर प्रकारनां मरण पण संक्षेपथी कह्यां छे. तेमां प्राणीहिंसा मृपावाद विगेरेमा प्रवृत्त थइ, कामभोगमां श्रासक्त थइ, वृद्धावस्थामां व्याधिग्रस्त थान, करेला कर्मनो पश्चात्ताप करतो प्राणी दुर्गतिमा नाय हे, र विगरे बाळ मरमानो व्याख्यामा जणायु छ. तथा गृहस्थाश्रममा रहीने पण जो सदाचार पूर्वक सदरात पाळे छे तेश्रो स्वर्गादिक गतिने पामै के, ए विगेरे बाळपंडित मरणनी व्याख्यामां बतायुके, पाने जेनो गृह, | धन, स्त्री विगेरेनो सर्वथा त्याग करी केवळ आत्मकार्य साधवामां ज तत्पर रहे थे तेश्रो मोक्षादिक गतिने पामे छे, ए विगैरे पंडित मारणनी व्याख्यामा देखाड्युं छे. इत्यादि उत्तम उपदेश मा अध्ययनर्मा नाप्यो छे. अध्ययन ६ पाहुँ १३४-पंडितमरगा, विद्या अने चारित्रवाळा साधुमोनु ज थतुं होबाधी भा अध्ययनमा निर्मथ स्वरूप यताव्युं छे. तेमा विद्याहीन पुरुष घणुं दुःख पामे छे, तेथी स्त्री, पुत्र, धनादिक उपरना मोहरूप अविद्यानो त्याग करवो, माता, पिता, स्त्री, पुत्र विगेरे कोइ पण दुःखयी मुकाववा समर्थ नथी, तेथी ते सर्वना स्नेहपाशनो त्याग करवो, हिंसादिक पांच श्राश्रवनो त्याग करवो, विविध भाषानुं के शास्त्रनुं ज्ञान छतां तेने क्रियामां न मकाय तो ते पण अविद्याज छ, शरीर अने कामभोगने विषे जे मासक्ति ते पण अविधाले, ते सर्व जाणी तेनो त्याग कग अपनत्तपणे संयमर्नु पालन करी विचर के बेथी सर्व दुःखथी मुक्त थवाय इत्यादि बताव्यु छे. --

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