Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 4
________________ होवा जोहए. अने तेज प्रमाणे के एसआ सूत्र साधत बांचतां निश्चय थाय छे. दरेक अध्ययनो सूत्ररूपे रखनार श्रीसुधर्मास्वामीए उत्तरोत्तर सहेतुक करां छे, ते पण टीकाकारे स्पष्ट रीते वताब्यु छे. जो के श्रासुत्र उपर वादीवेताळ श्रीशांतिसूगिए मोटी टीका करेली द्वे, भने त्यारपछी घणा प्राचार्योप भिन्न भिन्न टीकामो करेली के, तो पण भा भाषांतर करवी वखते श्रीलक्ष्मीवल्लभ गणिकृत लक्ष्मीवल्लभी टीका अने महोपाध्याय श्रीभात्रविजयजी कृत टीकानो प्राधारलीधो छे. बन्ने टीकाकारोए मूळ सूत्रनो अर्थ विस्तारथी समजाव्यो छे; तेमज कथाभाग पण लक्ष्मीबल्लभी टीका करतां भावविजयजीनी टीकामां वधारे विस्तारथी प्राप्यो है. आ सूत्रना भाषांतरमा सामान्य बोधवाळाने अति विस्तार बांचता कंटाळा न आवे तेमज अति संशित वाचतां अपेक्षा न रहे तेटमा माटे तेमनी बनेनी रुचिने अनुसरी बन्ने दीकामांथी जोइनो विभाग लीधो छे. परंतु मूळ सूत्रनो अर्थ तो संपूर्ण दंडान्वयनी रीते सूचना पद मूकीने ज श्याप्यो छे. वधारे सरळसाने माटे मूळ सूत्रनी गाथाओ उपर दंडान्वय प्रमाणे भांकडा लख्या हे, तेथी सामान्य बोधवाळा साधु साध्वी विगेरेने जीवविचारादिक प्रकार यानी जेम साळताथी श्रा सूचना अर्थनुं ज्ञान थइ शके तेम छ, अने तेथी लेभोने ज ा ग्रंथ विशेष उपयोगी छे. संस्कृतना अभ्यासीओने माटे तो श्रीलक्ष्मीवल्लभी * विगेरे टीकाोज योग्य छे. श्रा ग्रंथ श्रावी रीतनो पावना माटे प्रथम गुरुणीजी श्रीशिवश्रीजीए साध्वीजी श्रीलाभश्रीजीने भळामण की हती, भने तेभोश्रीना तथा तेमनी मुख्य शिष्या साध्वीजी श्रीतिलकधीजीना उपदेशथी सो रुपीयानी सहाय प्रथमधीज मळी हती, तेमज गुरुग्णीजी श्रीहतश्रीजी तथा तेमनी मुख्य शिष्या साध्वीजी श्रीउत्तमश्रीजीमा उपदेशथी धारसो रुपीयानी सहाय मळी हती. ते उपरथी साध्वीजी जाभश्रीजीए भा सभाना शास्त्री जेठालाल हरिभाई पासे पोतानी देखरेख नीचे या ग्रंथ काम शरु कराव्यु. अने बीजी बंधारे सहाय

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