Book Title: Agam 41 Pindnijutti Beiyam Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 22
________________ जुगमेत्तंतरदिहिँ अतुरियचवलं सगिहमितं ।। [३२१] द₹ण य तमनगारं सड्ढी संवेगमागया काई । विपुल ऽन्नपाण घेत्तूण निग्गया निग्गओ सोऽवि गाहा-३२२ [३२२] नीयद्वारंमि घरे न सुज्झई एसणत्तिकाऊणं । नीहंमिए अगारी अच्छइ विलिया व गहिएणं ।। [३२३] चरणकरणालसंमी अन्नंमि य आगए गहिय पुच्छा । इहलोगं परलोग कहेइ चइउं इमं लोगं ।। [३२४] नीयदुवारंमि घरे भिक्खं निच्छंति एसणासमिया । जं पुच्छसि मज्झ कहं कप्पड़ ? लिंगोवजीवी ऽहं ।। [३२५] साहुगुणेसणकहणं आउट्टा तस्स तिप्पड़ तहेव । कुक्कुडि चरंति एए वयं तु चिन्नव्वया बीओ ।। [३२६] पाओकरणं विहं पागडकरणं पगासकरणं च । पागड संकामण कुड्डदारपाए य छिन्ने व ।। [३२७] रयणपईवे जोई न कप्पइ पगासणा सुविहियाणं | अत्तद्विय परिभोत्तुं कप्पइ कप्पे अकाऊणं ।। [३२८] संचारिमा य चुल्ली बहिं व चुल्ली पुरा कया तेसिं । तहि रंधति कयाई उवही पूई य पाओ य ।। [३२९] नेच्छह तमिसंमि तओ बाहिरचल्लीए साह सिद्धण्णे | इय सोउं परिहरए पुढे सिटुंमिवि तहेव ।। [३३०] मच्छियधम्मा अंतो बाहि पवायं पगासमासन्नं । इय अत्तद्विय गहणं पागडकरणे विभासा उ ।। [३३१] कुड्डस्स कुणइ छिड्डं दारं वड्ढेइ कुणइ अन्नं वा । अवणेइ छायणं वा ठावइ रयणं व दिप्पंतं ।। [३३२] जोइ पइवं कुणइ व तहेव कहणं तु पुढेऽपुढेवा | अत्तट्ठिए 3 गहणं जोइ पईवे 3 वज्जेइ ।। [३३३] पागडपयासकरणे कयंमि सहसा व अहवऽनाभोगा | गहियं विगिंचिऊणं गेण्हड अन्नं अकयकप्पे ।। [३३४] कीयगडंपिय दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं । आयकियं च परकियं परदव्वं तिविह ___ऽचित्ताइ ।। [३३५] आयकियं पुण दुविहं दव्वे भावे य दव्व चुण्णाई । भावंमि परस्स ट्ठा अहवावी अप्पणा चेव ॥ [३३६] निम्मल्लगंधगलिया वन्नयपोत्ताइ आयकय दव्वे ।। गेलन्ने उड्डाहो पउणे चड़गारि अहिगरणं ।। [३३७] वइयाइ मंखमाई परभावकयं तु संजयहाए । दीपरत्नसागर संशोधितः] [21] [४१-पिंडनिज्जुत्ति]

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