Book Title: Agam 41 Pindnijutti Beiyam Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 33
________________ । किं तेणऽम्हे जायसु सो किविणो स दाहिइ न तुझं [५०८] दाहामि तेण भणिए जइ न भवसि छण्हमेसि पुरिसाणं । अन्नयरो तो तेऽहं परिसामज्झंमि पणया मि = गाहा-५०९ = = = = = = = = [५०९] सेयंगुलि बगुड्डावे किंकरे पहायए तहा । गिद्धावरंखि हद्दन्नए य पुरिसाहमा छा उ [५१०] जायसु न एरिसोऽहं इट्टगा देहि पुव्वमइगंतुं । माला उत्तारि गुलं भोएमि दिएत्ति आरूढा [५११] सिइअवणण पडिलाभण दिस्सियरी बोलमंगुली नासं । दुण्हेगयरपओसो आयविवत्ती य उड्डाहो [५१२] रायगिहे धम्मरुई असाढभूई य खुड्डओ तस्स | रायनडगेहपविसण संभोइय मोयए लंभो आयरिय उवज्झाए संघाडग काणखुज्ज तद्दोसी । नडपासण पज्जत्तं निकायण दिने दिने दानं [५१४] धूयदुए संदेसो दान सिणेह करणं रहे करणं । लिंगं मुयत्ति गुरुसिह विवाहे उत्तमा पगई रायघरे य कयाई निम्महिलं नाडगं नडागच्छी । ता य विहरंमि मत्ता उवरि गिहे दोवि पासुत्ता [५१६] वाघाएण नियत्तो दिस्स विचेला विराग संबोही । इंगियनाए पुच्छा पजीवणं रद्वपालंति इक्खागवंस भरहो आयंसघरे य केवलालोओ | हाराइखिवण गहणं उवसग न सो नियत्तोत्ति तेन समं पव्वइया पंच नरसयत्ति नाडए डहणं । गेलन्नखमगपाहुण थेरादिट्ठा य बीयं तु [५१९] लब्भंतंपि न गिण्हइ अन्नं अमुगंति अज्ज घेच्छामि । भद्दरसंति व काउं गिण्हइ खद्धं सिणिद्धाई [५२०] चंपा छणंमि घिच्छामि मोयए तेऽवि सीहकेसरए | पडिसेह धम्मलाभ काऊणं सीहकेसरए [५२१] सड्ढऽड्ढरत्तकेसरभायणभरणं च पुच्छ पुरिमड्ढे | उवओग संत चोयण साहत्ति विगिंचणे नाणं [५२२] दुविहो उ संथवो खलु संबंधी वयणसंथवो चेव । एक्केक्कोविय दुविहो पुव्विं पच्छा य नायव्वो [५२३] मायपिइ पुव्वसंथव सासूससुराइयाण पच्छा उ । गिहि संथव संबंधं करेइ पुव्वं च पच्छा वा [५२४] आयवयं च परवयं नाउं संबंधए तयणुरूवं । दीपरत्नसागर संशोधितः] [32] = = = = = = = [४१-पिंडनिज्जुत्ति]

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