Book Title: Agam 41 Pindnijutti Beiyam Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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चरंति जक्खरूवेणं पुया
ऽपूया हियाऽहिया [४९१] एएण मज्झ भावो दिवो लोए पणामहेज्जंमि ।
एक्केक्के पुवुत्ता भद्दगपंताइणो दोसा
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गाहा-४९२
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[४९२] एमेव कागमाई साणग्गहणेण सूइया होति ।
जो वा जंमि पसत्तो वणइ तहिं पुट्ठऽपुट्ठो वा [४९३] दानं न होइ अफलं पत्तमपत्तेस् सन्निजुज्जतं ।
इय विभणिएऽवि दोसा पसंसओ किं पुण अपत्ते [४९४] भणइ नाहं वेज्जो अहवाऽवि कहेइ अप्पणो किरियं ।
अहवाऽवि विज्जयाए तिविह तिगिच्छा मुणेयव्वा भिक्खाइ गओ रोगी किं विज्जोऽहंति पुच्छिओ भणइ । अत्थावत्तीए कया अबुहाणं बोहणा एवं एरिसयं चिय दुक्खं भेसज्जेण अम्गेण पउणं मे |
सहसुप्पन्नं व रुयं वारेमो अट्ठमाईहिं [४९७] संसोधन संसमणं नियाणपरिवज्जणं च जं तत्थ ।
आगंतु धाउखोभे य आमए कुणइ किरियं तु अस्संजमजोगाणं पसंधणं कायघाय अयगोलो ।
दुब्बलवग्घा हरणं अच्चुदये गिण्हणुड्डाहे [४९९] हत्थकप्प गिरिफुल्लिय रायगिहं खलु तहेव चंपा य ।
कडघयपुन्ने इट्टग लड्डुग तह सीहकेसरए विज्जातवप्पभावं रायकुले वाऽवि वल्लभत्तं से । नाउं ओरस्सबलं जो लब्भइ देइ भया कोहपिंडो सो अन्नेसि दिज्जमाणे जायंतो वा अलद्धिओ कुप्पे ।
कोहफलंमिऽवि दिढे जो लब्भइ कोहपिंडो सो [५०२] करडुयभत्तमलद्धं अन्नहिं दाहित्थ एव वच्चंतो ।
थेरा भोयण तइए आइक्खण खामणा दानं [५०३] उच्छाहिओ परेण व लद्धिपसंसाहिं वा समुत्तइओ |
अवमानिओ परेण य जो एसइ मानपिंडो सो [५०४] इट्टगछणंमि परिपिंडियाण उल्लाव को न ह पगेव ।
आणिज्ज इट्टगाओ ? खुड्डो पच्चाह आणेमि जइविय ता पज्जत्ता अगुलघयाहिं न ताहिं णे कज्जं |
जारिसियाओ इच्छह ता आणेमित्ति निक्खंतो। [५०६] ओहासिय पडिसिद्धो भणइ अगारिं अवस्सिमा मज्झं ।
जइ लहसि तो तं मे नासाए कुणसु मोयंति (५०७] कस्स घर पुच्छिऊणं परिसाए अमुइ कइरउ पुच्छे ।
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दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४१-पिंडनिज्जुत्ति]

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