________________
आगमों का प्रथम व्याख्या - साहित्य निर्युक्ति है। संक्षिप्त शैली में पद्यबद्ध लिखा गया यह साहित्य भारतीय प्राचीन वाङ्मय की अमूल्य धरोहर है। इसमें आचार्य भद्रबाहु ने आगम-ग्रंथ में आए विशेष शब्दों की निक्षेप परक व्याख्या प्रस्तुत की है। यह व्याख्या आज अर्थ-विकास विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
निर्युक्ति-साहित्य के अन्तर्गत पिण्ड-निर्युक्ति चरणकरणानुयोग से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। क्रमबद्ध और विषयप्रतिबद्ध शैली में लिखा गया यह ग्रंथ साधु को भिक्षाचार्य से सम्बन्धित अनेक विषयों को अपने भीतर समेटे हुए है । आचार - विषयक ग्रंथ होने के कारण कुछ परम्पराओं में यह मूल सूत्र के रूप में परिगणित है। प्रस्तुत ग्रंथ में उद्गम, उत्पादना, एषणा और परिभोगैषणा के दोषों का विस्तार से सांगोपांग वर्णन हुआ है। तत्कालीन सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अत्यन्त समृद्ध है । निर्युक्ति-साहित्य की शृंखला में यह चौथा पुष्प भी विद्वद् जगत् में प्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय होगा, ऐसा विश्वास है ।
Jain Education International
www.lainelibrary.org