Book Title: Agam 36 Vyavahara Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 6
________________ आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार' उद्देशक/सूत्र सम्पूर्ण प्रायश्चित्त लगाए तो उसे वहीं परिहार तप में रख देना । वो कईं दोष लगाए उसमें जो प्रथम दोष लगा हो वो पहले आलोवे पहला दोष बाद में आलोवे, बाद के दोष पहले आलोवे, बाद के दोष बाद में आलोवे तो चार भेद मानना । सभी अपराध की आलोचना करेंगे ऐसा संकल्प करते वक्त माया रहित आलोचना करने की सोचे और आलोचना भी माया रहित करे, माया सहित सोचकर माया रहित आलोवे, माया रहित सोचकर माया सहित आलोवे, माया सहित सोचे और माया सहित आलोवे ऐसे चार भेद जानना । इस तरह आलोचना करके फिर सभी अपने किए हए कर्म समान पाप को इकटे करके प्रायश्चित्त दे । उस तरह प्रायश्चित्त तप के लिए स्थापन किए साधु को तप पूर्ण होने से बाहर नीकलने से पहले फिर से किसी दोष का सेवन करे तो उस साधु को पूरी तरह से उस परिहार तप में फिर से रखना चाहिए। सूत्र-१९ बहुत प्रायश्चित्त वाले - बहुत प्रायश्चित्त न आए हो ऐसे साधु इकटे रहना या बैठना चाहे, चिन्तवन करे लेकिन स्थविर साधु को पूछे बिना न कल्पे । स्थविर को पूछकर ही कल्पे । यदि स्थविर आज्ञा दे कि तुम इकटे विचरो तो इकट्ठे रहना या बैठना कल्पे, यदि स्थविर इकट्ठे विचरने की अनुमति न दे तो वैसा करना न कल्पे, यदि स्थविर की आज्ञा बिना दोनों इकटे रहे, बैठे या वैसा करने का चिन्तवन करे तो उस साधु को उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। सूत्र- २०-२२ परिहार तप में रहे साधु बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए जाए तब स्थविर उस साधु को परिहार तप याद करवाए, याद न दिलाए या याद हो लेकिन जाते वक्त याद करवाना रह जाए तो साधु को एक रात का अभिग्रह करके रहना कल्पे और फिर जिस दिशा में दूसरे साधर्मिक साधु साध्वी विचरते हो उस दिशा में जाए लेकिन वहाँ विहार आदि निमित्त से रहना न कल्पे लेकिन बीमारी आदि के कारण से रहना कल्पे वो कारण पूरा होने पर दूसरे कहे की अहो आर्य ! एक या दो रात रहे तो वो वैयावच्च के लिए जानेवाले परिहार तपसी को एक या दो रात रहना कल्पे । लेकिन यदि एक या दो रात से ज्यादा रहे तो जितना ज्यादा रहे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - २३-२५ यदि कोई साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय गण को छोड़कर एकलविहारी प्रतिमा (अभिग्रह विशेष) अंगीकार करके विचरे (बीच में किसी दोष लगाए) फिर से वो ही गण (गच्छ) को अंगीकार करके विचरना चाहे तो उन साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय को फिर से आलोचना करवाए, पड़िकमावे, उसे छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त के लिए स्थापना करे । सूत्र-२६-३० जो साधु (गच्छ) गण छोडकर पासत्था रूप से, स्वच्छंद रूप से, कुशील रूप से, आसन्न रूप से, संसक्त रूप से विचरण करे और वो फिर से उसी (गच्छ) गण को अंगीकार करके विचरण करना चाहे तो उसमें थोड़ा भी चारित्र हो तो उसे आलोचना करवाए, पडिकमाए, छेद या परिहार तप में स्थापना करे। सूत्र-३१-३२ जो साधु गण (गच्छ) को छोड़कर (कारणविशेष) पर पाखंडी रूप से विचरे फिर उसी गण (गच्छ) को अंगीकार करके विहरना चाहे तो उस साधु को चारित्र छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त की कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखता, केवल उसे आलोचना देना, लेकिन जो साधु गच्छ छोड़कर गृहस्थ पर्याय धारण करे वो फिर उसी गच्छ में आना चाहे तो उस छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त नहीं है । उसे मूल से ही फिर से दीक्षा में स्थापन करना चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 6

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