Book Title: Agam 36 Vyavahara Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 10
________________ आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-३ सूत्र-६६ साधु गच्छ नायकपन धारण करना चाहे तो हे भगवंत ! यदि वो साधु आयारो-निसीह आदि सूत्र संग्रह रहित है तो गच्छनायकपन धारण कर सके ? यदि ऐसा न हो तो गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे लेकिन यदि वो आयारो-निसीह आदि सूत्र संग्रह सहित और शिष्य आदि परिवारवाला हो तो गच्छ नायकपन धारण कर सके। सूत्र - ६७ जो कोई साध गच्छ नायकपन धारण करना चाहे उसे स्थविर को पूछे बिना गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे स्थविर को पूछकर गच्छ नायकपन धारण करना कल्पे । स्थविर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे । जितने दिन वो आज्ञा रहित गच्छ नायकपन धारे तो उतने दिन का छेद या तप का प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - ६८-६९ तीन साल का पर्याय हो ऐसे श्रमण-निर्ग्रन्थ हो और फिर आचार-संयम, प्रवचन-गच्छ की सारसंभाळादिक संग्रह और पाणेसणादि उपग्रह के लिए कुशल हो, जिसका आचार खंड़ित नहीं हुआ, भेदन नहीं हुआ, सबल दोष नहीं लगा, संक्लिष्ट आचार युक्त चित्तवाला नहीं, बहुश्रुत, कईं आगम के ज्ञाता, जघन्य से आचार प्रकल्प-निसीह सूत्रार्थ के धारक हैं ऐसे साधु को उपाध्याय पद देना कल्पे-लेकिन जो उक्त आचार आदि में कुशल नहीं है, और फिर अक्षत आचार आदि नहीं है ऐसे श्रमण-निर्ग्रन्थ का तीन साल का दीक्षापर्याय हो तो भी पदवी देना न कल्पे। सूत्र-७०-७१ पाँच साल के पर्यायवाले श्रमण-निर्ग्रन्थ यदि आचार-संयम, प्रवचन-गच्छ की सर्व फिक्र की प्रज्ञा-उपधि आदि के उपग्रह में कुशल हो, जिसका आचार छेदन-भेदन न हो, क्रोधादिक से जिसका चारित्र मलिन नहीं और फिर जो बहुसूत्री आगमज्ञाता है और जघन्य से दसा-कप्प-व्यवहार सूत्र के धारक हैं उन्हें यह पद देना न कल्पे । सूत्र - ७२-७३ आठ साल के पर्यायवाले श्रमण-निर्ग्रन्थ में ऊपर के सर्व गुण और जघन्य से ठाण, समवाय ज्ञाता हो उसे आचार्य से गणावच्छेदक पर्यन्त की पदवी देना कल्पे, लेकिन जिनमें उक्त गुण नहीं है उसे पदवी देना न कल्पे । सूत्र - ७४ निरुद्धवास पर्याय - (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य-उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं । जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार-बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान देने में दोष न लगाए ऐसे, घर में सबको दान देने की अनुज्ञा है, सभी समरूप से दान देनेवाले हैं और फिर उस कुल की प्रतीति करके-धृति करके यावत् समरूप दान करके जो निरुद्ध पर्यायवाले श्रमण निर्ग्रन्थ से दीक्षा ली उन्हें आचार्य-उपाध्याय रूप से उसी दिन भी स्थापन करना कल्पे । सूत्र - ७५ निरुद्ध वास पर्याय-पहले दीक्षा ली हो उसे छोड़कर पुनः दीक्षा लिए कुछ साल हुए हो ऐसे श्रमण-निर्ग्रन्थ को आचार्य-उपाध्याय कालधर्म पाए तब पदवी देना कल्पे । यदि वो बहुसूत्री न हो तो भी समुचयरूप से वो आचार प्रकल्प-निसीह के कुछ अध्ययन पढ़े हैं और बाकी के पदूंगा ऐसा चिन्तवन करते हैं वो यदि पढ़े तो उसे आचार्यउपाध्याय की पदवी देना कल्पे, लेकिन पहूँगा ऐसा कहकर न पढ़े तो उसे पदवी देना न कल्पे । सूत्र - ७६-७७ वो साधु जो दीक्षा में छोटे हैं । तरुण हैं । ऐसे साधु की आचार्य-उपाध्याय काल कर गए हो उनके बिना मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 10

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