Book Title: Agam 36 Vyavahara Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 21
________________ आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-८ सूत्र- १८७ जिस घर के लिए वर्षावास रहा उस घर में, बाहर के प्रदेश में या दूर के अन्तर में जो शय्या-संथारा मिला हो वो - वो मेरे हैं ऐसा शिष्य कहे लेकिन यदि स्थविर आज्ञा दे तो लेना कल्पे, यदि आज्ञा न दे तो लेना न कल्पे । उसी तरह आज्ञा मिले तो ही रात-दिन वो शय्या-संथारा लेना कल्पे । सूत्र - १८८-१८९ वो साधु हल्के श्याय-संथारा की गवेषणा करे, ये-वो एक हाथ से उठाकर एक-दो या तीन दिन के मार्ग में ले जाने के लिए समर्थ हो ऐसा संथारा शर्दी-गर्मी के लिए पाए, उसी तरह वर्षावास के लिए प्राप्त करे। सूत्र - १९० वो साधु कम वजन के शय्या-संथारा की गवेषणा करे, ये-वो एक हाथ से उठाकर एक, दो, तीन, चार, पाँच दिन के दूर के रास्ते के लिए उठाने को समर्थ हो जिससे वो शय्या-संथारा मुझे बढ़ती वर्षाऋतु में काम लगे। सूत्र - १९१ जो स्थविर स्थिरवास रहे उसे दंड़ी, पात्रा, सर ढंकने का वस्त्र, पात्रक, लकड़ी, वस्त्र, चर्मखंड़ रखना कल्पे। यदि स्थविर अकेले हो तब यह सभी उपकरण कहीं रखकर गृहस्थ के घर आहार ग्रहण के लिए नीकले या प्रवेश करे । उसके बाद वापस आने पर जिसके वहाँ उपकरण रखे हों उसकी आज्ञा लेकर वो उपकरण भुगते या त्याग करे। सूत्र - १९२-१९४ साधु-साध्वी को पाड़िहारिक-वापस करने के उचित या शय्यातर के पास से शय्या-संथारा पुनः लेकर अनुज्ञा लिए बिना बाहर जाना न कल्पे, आज्ञा लेकर जाना कल्पे । सूत्र-१९५-१९७ साधु-साध्वी को पाडिहारिक या शय्यातर के पास से शय्या-संथारा पहले लिया हो वो उन्हें सौंपकर दूसरी दफा उनकी आज्ञा बिना रखना न कल्पे । आज्ञा लेकर रखना कल्पे, या पहले ग्रहण करके फिर आज्ञा लेना भी न कल्पे, पूर्व आज्ञा लेकर फिर ग्रहण करना कल्पे । यदि ऐसा माने कि यहाँ वाकई में प्रातिहारिक शय्या-संथारा सुलभ नहीं है, तो पहले से ही ग्रहण कर ले फिर अनुमति माँगे तब शायद पाड़िहारिक के साथ शिष्य का झगड़ा हो तो स्थविर उसे रोके और कहे कि तुम कोप मत करो। तुम उनकी वसती ग्रहण करके रहे हो और कठिन वचन भी बोलते हो ऐसे दोनों कार्य करने योग्य नहीं हैं । उस तरह मीष्ट वचन से दोनों को शान्त करे । सूत्र - १९८-२०० साधु गृहस्थ के घर आहार के लिए जाए, या बाहर स्थंडिल या स्वाध्याय भूमि में जाए, या एक दूसरे गाँव विचरते हो वहाँ अल्प उपकरण भी गिर जाए । उसे कोई साधर्मिक साधु देखे, गृहस्थ थकी वो चीज ग्रहण करना कल्पे । वो चीजें लेकर वो साधर्मिक आपसी साधु को कहे कि हे आर्य ! यह उपकरण किसका है तुम जानते हो ? साधु कहे कि हा, जानता हूँ, वो उपकरण मेरा है । तो उसे दे । यदि ऐसा कहे कि हम नहीं जानते तो लानेवाले साधु खुद न भुगते, न दूसरे को दे लेकिन एकान्त-निर्दोष-स्थंडिल भूमि में परठवे । सूत्र - २०१ साधु-साध्वी को अधिक पात्र आपस में ग्रहण करना कल्पे । यदि वो पात्र मैं किसी को दूंगा, मैं खुद ही रखूगा या दूसरे किसी को भी देंगे तो जिनके लिए उन्हें लिया हो उन्हें पूछे या न्यौता दिए बिना आपस में देना न मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 21

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