Book Title: Agam 36 Vyavahara Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 19
________________ आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-७ सूत्र - १६०-१६२ जो साधु-साध्वी सांभोगिक हैं यानि एक सामाचारी वाले हैं वहाँ साधु को पूछे बिना साध्वी खंडित, सबल, भेदित या संक्लिष्ट आचारवाले किसी अन्य गण के साध्वी को उसे पापस्थानक की आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त आदि किए बिना उनकी शाता पूछना, वांचना देना, एक मंड़लीवाले के साथ भोजन करना, साथ रहना, थोड़े वक्त या हमेशा के लिए किसी पदवी देना आदि कुछ न कल्पे, यदि वो आलोचना आदि सब करे तो गरु की आज्ञा के बाद उनकी शाता पूछना यावत् पदवी देना या धारण करना कल्पे, इस तरह के साध्वी को भी यदि वो साध्वी को साथ रखना स्व-समुदाय के साध्वी न चाहे तो उनके गच्छ में वापस जाना चाहिए। सूत्र-१६३ यदि कोई साधु-साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साधु को परोक्ष तरह या दूसरे स्थानक में प्रत्यक्ष बताए बिना विसंभोगि यानि मांडली बाहर करना न कल्पे । उसी स्थानक में प्रत्यक्ष उनके सन्मुख कहकर विसंभोगि करना कल्पे । सन्मुख हो तब कहे कि हे आर्य ! इस कुछ कारण से अब तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार न करूँ । ऐसा कहकर विसंभोगी करना । यदि वो अपने पाप कार्य का पश्चात्ताप करे तो उसे विसंभोगी करना न कल्पे । लेकिन यदि पश्चात्ताप न करे तो उसे मुँह पर कहकर विसंभोगी करे । सूत्र-१६४ यदि कोई साधु-साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साध्वी को दूसरे साध्वी ने प्रत्यक्ष संभोगीपन में से विसंभोगीपन यानि की मांडली व्यवहार बंध करना न कल्पे । परोक्ष तरह अन्य के द्वारा कहकर विसंभोगी पन करना कल्पे । अपने आचार्य-उपाध्याय को ऐसा कहे कि कुछ कारण से अमुक साध्वी के साथ मांडली व्यवहार बंध किया है। अब यदि वो साध्वी पश्चात्ताप करे तो बताकर व्यवहार बंध कर देना न कल्पे । यदि वो पश्चात्ताप न करे तो विसंभोगी करना कल्पे । सूत्र-१६५-१६८ साधु या साध्वी को अपने खुद के हित के लिए किसी को दीक्षा देना, मुँड करना, आचार शीखलाना, शिष्यत्व देना, उपस्थापन करना, साथ रहना, आहार करना या थोड़े दिन या हमेशा के लिए पदवी देना न कल्पे, दूसरों के लिए दीक्षा देना आदि सब काम करना कल्पे । सूत्र-१६९-१७० साध्वी को विकट दिशा में विहार करना या धारण करना न कल्पे, स को कल्पे। सूत्र-१७१-१७२ साधु को विकट दिशा के लिए कठिन वचन आदि का प्रायश्चित्त लेकर वहाँ बैठे क्षमापना करना न कल्पे, साध्वी को कल्पे। सूत्र - १७३-१७४ साधु-साध्वी को विकाल में स्वाध्याय करना न कल्पे, यदि साधु की निश्रा-आज्ञा हो तो साध्वी को विकाल में भी स्वाध्याय करना कल्पे । सूत्र-१७५-१७६ साधु-साध्वी को असज्झाय में स्वाध्याय करना न कल्पे, सज्झाय में (स्वाध्यायकाले) स्वाध्याय करना कल्पे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 19

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