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आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार'
उद्देशक/सूत्र
उद्देशक-६ सूत्र-१४८
जो किसी साधु अपने रिश्तेदार के घर जाना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना जाना न कल्पे, पूछने के बाद भी यदि जो स्थविर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे । यदि आज्ञा बिना जाए तो जितने दिन रहे उतना छेद या तप प्रायश्चित्त आता है। अल्पसूत्री या आगम के अल्पज्ञाता को अकेले ही अपने रिश्तेदार के वहाँ जाना न कल्पे । दूसरे बहुश्रुत या कईं आगम के ज्ञाता के साथ रिश्तेदार के वहाँ जाना कल्पे ।
__ यदि पहले चावल हुए हो लेकिन दाल न हुई हो तो चावल लेना कल्पे लेकिन दाल लेना न कल्पे । यदि पहले दाल हुई हो और जाने के बाद चावल बने तो दाल लेना कल्पे, लेकिन चावल लेना न कल्पे । दोनों पहले से ऊतारे गए हो तो दोनों लेना कल्पे और एक भी चीज न हई हो तो कुछ भी लेना न कल्पे यानि साधु के जाने से पहले जो कुछ तैयार हो वो सब कल्पे और जाने के बाद तैयार हो ऐसा कोई भी आहार न कल्पे । सूत्र - १४९
आचार्य-उपाध्याय को गण के विषय में पाँच अतिशय बताए हैं । उपाश्रय में पाँव घिसकर पूंजे या विशेष प्रमार्जे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता, उपाश्रय में मल-मूत्र का त्याग करे, शुद्धि करे, वैयावच्च करने का सामर्थ्य हो तो ईच्छा हो तो वैयावच्च करे, ईच्छा न हो तो वैयावच्च न करे, उपाश्रय में एक-दो रात्रि निवास करे या उपाश्रय के बाहर एक-दो रात्रि निवास करे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। सूत्र-१५०
गणावच्छेदक के गण के लिए दो अतिशय बताए हैं । गणावच्छेदक उपाश्रय में या उपाश्रय के बाहर एक या दो रात निवास करे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। सूत्र - १५१
वो गाँव, नगर, राजधानी यावत् संनिवेश के लिए, एक ही आँगन, एक ही द्वार-प्रवेश, निर्गमन का एक ही मार्ग हो वहाँ कईं अतिथि साधु को (श्रुत के अज्ञान को) ईकट्ठे होकर रहना न कल्पे । यदि वहाँ आचार प्रकल्प के ज्ञात साधु हो तो रहना कल्पे लेकिन यदि न हो तो वहाँ जितने दिन रहे उतने दिन का तप या छेद प्रायश्चित्त आता
सूत्र - १५२
वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए अलग वाड़ हो, दरवाजे और आने-जाने के मार्ग भी अलग हो वहाँ कईं अगीतार्थ साधु को और श्रुत अज्ञानी को ईकटे होकर रहना न कल्पे । यदि वहाँ कोई एक आचार प्रकल्प-निसीह आदि को जाननेवाले हो तो उनके साथ तीन रात में आकर साथ रहना कल्पे । ऐसा करते-करते किसी छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त नहीं आता । लेकिन यदि आचार प्रकल्पधर कोई साधु वहाँ न हो तो जो साधु तीन रात वहाँ निवास करे तो उन सबको जितने दिन रहे उतने दिन का तप या छेद प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - १५३-१५४
वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए कई वाड़-दरवाजा आने-जाने का मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत या कईं आगम के ज्ञाता का अकेले रहना न कल्पे, यदि उन्हें न कल्पे तो अल्पश्रुतधर या अल्प आगमज्ञाता को किस तरह कल्पे ? यानि न कल्पे, लेकिन एक ही वाड़, एक दरवाजा, आने-जाने का एक ही मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत - आगमज्ञाता साधु एकाकीपन से रहना कल्पे । वहाँ ऊभयकाल श्रमण भाव में जागृत रहकर अप्रमादी होकर सावधान होकर विचरे । सूत्र - १५५
जिस जगह कईं स्त्री-पुरुष मोह के उदय से मैथुन कर्म प्रारम्भ कर रहे हो वो देखकर श्रमण-दूसरे किसी अचित्त छिद्र में शुक्र पुद्गल नीकाले या हस्तकर्म भाव से सेवन करे तो एक मास का गुरु प्रायश्चित्त आता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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