Book Title: Agam 36 Vyavahara Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 18
________________ आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार' उद्देशक/सूत्र लेकिन यदि हस्तकर्म की बजाय मैथुन भाव से सेवन करे तो गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - १५६-१५९ साधु या साध्वी को दूसरे गण से आए हुए, स्वगण में रहे साध्वी या जो खंड़ित-शबल भेदित या संक्लिष्ट आचारवाले हैं। और फिर जिस साध्वी ने उस पापस्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निंदा, गर्हा, निर्मलता, विशुद्धि नहीं की, न करने के लिए तत्पर नहीं हो, दोष अनुसार उचित प्रायश्चित्त नहीं किया, ऐसे साध्वी को साता पूछना, संवास करना, मूत्रादि वांचना देनी, एक मांडली भोजन लेना, थोड़े वक्त के बाद जावज्जीव का पदवी देना या धारण करना न कल्पे, लेकिन यदि उस पापस्थानक की आलोचना, प्रतिक्रमण आदि करके फिर से वो पाप सेवन न करने के लिए बेचैन हो, उचित प्रायश्चित्त ग्रहण करे, तो उसे एक मंडली में स्थापित करने यावत् पदवी देना कल्पे उद्देशक-६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 18

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