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आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार'
उद्देशक/सूत्र सूत्र - २५२-२५९
चार तरह के पुरुष हैं वो कहते हैं । (१) उपकार करे लेकिन मान न करे, मान करे लेकिन उपकार न करे, दोनों करे, दोनों में से एक भी न करे, (२) समुदाय का काम करे लेकिन मान न करे, मान करे लेकिन समुदाय का काम न करे, दोनों करे, दोनों में से एक भी न करे, (३) समुदाय के लिए संग्रह करे लेकिन मान न करे, मान करे लेकिन समुदाय के लिए संग्रह न करे, दोनों करे, दोनों में से एक भी न करे, (४) गण को शोभायमान करे लेकिन मान न करे, मान करे लेकिन गण की शोभा न करे, दोनों करे, दोनों में से एक भी न करे,
(५) गण शुद्धि करे लेकिन मान न करे, मान करे लेकिन गण की शुद्धि न करे, दोनों करे, दोनो में से एक भी न करे, (६) रूप का त्याग करे लेकिन धर्म त्याग न करे, धर्म छोड़ दे लेकिन रूप न छोड़े, दोनों छोड़ दे, दोनों में से कुछ भी न छोड़े, (५) प्रियधर्मी हो लेकिन दृढ़धर्मी न हो, दृढ़धर्मी हो लेकिन प्रियधर्मी न हो, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो। सूत्र - २६०-२६१
चार तरह के आचार्य बताए - (१) प्रव्रज्या आचार्य लेकिन उपस्थापना आचार्य नहीं, उपस्थापना आचार्य मगर प्रव्रज्या आचार्य नहीं, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो, (२) उद्देशाचार्य हो लेकिन वंदनाचार्य न हो, वंदनाचार्य हो लेकिन उद्देशाचार्य न हो, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो। सूत्र - २६२-२६३
चार अन्तेवासी शिष्य बताए हैं - (१) प्रव्रज्या शिष्य हो लेकिन उपस्थापना शिष्य न हो, उपस्थापना शिष्य हो लेकिन प्रव्रज्या शिष्य न हो, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो, (२) उद्देशा करवाए लेकिन वांचना न दे, वांचना दे लेकिन उद्देशा न करवाए, दोनों करवाए, दोनों में से कुछ भी न करवाए । सूत्र - २६४
तीन स्थविर भूमि बताई है । वय स्थविर, श्रुत स्थविर और पर्याय स्थविर । ६० सालवाले वय स्थविर, ठाण-समवाय के धारक वो श्रुतस्थविर, बीस साल का पर्याय यानि पर्याय स्थविर । सूत्र - २६५
तीन शिष्य की भूमि कही है । जघन्य को सात रात्रि की, मध्यम वो चार मास की और उत्कृष्ट छ मास की सूत्र-२६६-२६७
साधु-साध्वी को लघु साधु या साध्वी जिनको आठ साल से कुछ कम उम्र है उसकी उपस्थापना या सहभोजन करना न कल्पे, आठ साल से कुछ ज्यादा हो तो कल्पे । सूत्र - २६८-२६९
साधु-साध्वी को बाल साधु या बाल साध्वी जिन्हें अभी बगल में बाल भी नहीं आए यानि वैसी छोटी वयवाले को आचार प्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना न कल्पे, बगल में बाल उगे उतनी वय के होने के बाद कल्पे । सूत्र - २७०-२८८
जिस साधु का दीक्षा पर्याय तीन साल का हुआ हो उसे आचार प्रकल्प अध्ययन पढ़ाना कल्पे, उसी तरह चार साल के पर्याय से, सूयगड़ो, पाँच साल पर्याय से दसा, कप्प, ववहार, आठ साल पर्याय से ठाण, समवाय, दश साल पर्याय से विवाह पन्नत्ति यानि भगवई, ११ साल पर्याय से खुड्डियाविमाणपविभत्ति, महल्लियाविमाणपविभत्ति, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, विवाहचूलिया, बारह साल पर्याय से उठाणसूय, समुठ्ठाणसूय, देविंदोववाय, नागपरिया-वणिय, चौदह साल पर्याय से आसिविसभावना, अठारह साल पर्याय से दिठ्ठीविसभावना, १९ साल पर्याय से दिठिवाय, उस तरह से बीस साल के पर्यायवाले साधु को सर्वे सूत्र का अध्ययन उद्देशो आदि करवाना कल्पे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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