Book Title: Agam 36 Vyavahara Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 13
________________ आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार' उद्देशक/सूत्र आदि को प्रायश्चित्त आता है । यदि उसके साथ पिता आदि किसी वडील ने दीक्षा ली हो और पाँच, दस या पंद्रह रात के बाद दोनों को साथ में उपस्थापन करे तो किसी छेद या परिहार प्रायश्चित्त नहीं आता । लेकिन यदि वडील की उपस्थापना न करनी हो फिर भी नवदीक्षित की उपस्थापना न करे तो जितने दिन उपस्थापना न करे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-१११ आचार्य-उपाध्याय स्मरण रखे या भूल जाए या नवदीक्षित साधु को (नियत वक्त के बाद) भी दशरात्रि जाने के बाद भी उपस्थापना (वड़ी दीक्षा) हुई नहीं, नियत सूत्रार्थ प्राप्त उस साधु के किसी वडील हो और उसे वडील रखने के लिए वो पढ़े नहीं तब तक साधु को उपस्थापना न करे तो कोई प्रायश्चित्त नहीं आता लेकिन यदि किसी ऐसे कारण बिना उपस्थापना न करे तो ऐसा करनेवाले आचार्य आदि को एक साल तक आचार्य पदवी देना न कल्पे। सूत्र- ११२ जो साधु गच्छ को छोड़कर ज्ञान आदि कारण से अन्य गच्छ अपनाकर विचरे तब कोई साधर्मिक साधु देखकर पूछे कि हे आर्य ! किस गच्छ को अंगीकार करके विचरते हो? तब उस गच्छ के सभी रत्नाधिक साधु के नाम दे । यदि रत्नाधिक पूछे कि किसकी निश्रा में विचरते हो? तो वो सब बहुश्रुत के नाम दे और कहे कि जिस तरह भगवंत कहेंगे उस तरह उनकी आज्ञा के मुताबिक रहेंगे। सूत्र - ११३ बहुत साधर्मिक एक मांडलीवाले साधु ईकटे विचरना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना वैसे विचरना या रहना न कल्पे । स्थविर को पछे तब भी यदि वो आज्ञा दे तो इकटे विचरना-रहना कल्पे यदि आज्ञा न दे तो न कल्पे। यदि आज्ञा के बिना विचरे तो जितने दिन आज्ञा बिना विचरे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-११४ आज्ञा बिना चलने के लिए प्रवृत्त साधु चार-पाँच रात्रि विचरकर स्थविर को देखे तब उनकी आज्ञा बिना जो विचरण किया उसकी आलोचना करे, प्रतिक्रमण करे, पूर्व की आज्ञा लेकर रहे लेकिन हाथ की रेखा सूख जाए उतना काल भी आज्ञा बिना न रहे। सूत्र-११५ कोई साधु आज्ञा बिना अन्य गच्छ में जाने के लिए प्रवर्ते, चार या पाँच रात्रि के अलावा आज्ञा बिना रहे फिर स्थविर को देखकर फिर से आलोवे, फिर से प्रतिक्रमण करे, आज्ञा बिना जितने दिन रहे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। साधु के संयम भाव को टिकाए रखने के लिए दूसरी बार स्थविर की आज्ञा माँगकर रहे । उस साधु को ऐसा कहना कल्पे कि हे भगवंत ! मुझे दूसरे गच्छ में रहने की आज्ञा दो तो रहूँ । आज्ञा बिना तो दूसरे गच्छ में हाथ की रेखा सूख जाए उतना काल भी रहना न कल्पे, आज्ञा के बाद ही वो काया से स्पर्श करे यानि प्रवृत्ति करे । सूत्र - ११६ अन्य गच्छ में जाने के लिए प्रवृत्त होकर निवर्तेल साधु चार या पाँच रात दूसरे गच्छ में रहे फिर स्थविर को देखकर सत्यरूप से आलोचना-प्रतिक्रमण करे, आज्ञा लेकर पूर्व आज्ञा में रहे लेकिन आज्ञा बिना पलभर भी न रहे सूत्र-११७ आज्ञा बिना चलने से निवृत्त होनेवाले साधु चार या पाँच रात गच्छ में रहे फिर स्थविर को देखकर फिर से आलोचना करे - प्रतिक्रमण करे - जितनी रात आज्ञा बिना रहे उतनी रात का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त स्थविर उसे दे । साधु संयम के भाव से दूसरी बार स्थविर की आज्ञा लेकर अन्य गच्छ में रहे आदि पूर्ववत् । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 13

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