Book Title: Agam 33A Maransamahim Dasamam Painnayam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ गाहा १८६ [१८६] अज्झवसाणविसुद्धी विवज्जिया जे तवं विगिट्ठमवि । कुव्वंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी । [१८७] एयं सरागसंलेहणा - विहिं जइ जई समायरइ । अज्झप्पसंजुयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं ।। [१८८] निखिला फासेयव्वा सरीरसंलेहणाविही एसा । एत्तो कसायजोगा अज्झप्पविहिं परमं वुच्छं ।। [१८९] कोहं खमाइ मानं मद्दवया अज्जवेण मायं च । संतोसेण व लोहं निज्जिण चत्तारि वि कसाए । [१९०] कोहस्स व मानस्स व माया-लोभेसु वा न एएसिं । वच्चई वसं खणंपि हु दुग्गगईवड्ढणकराणं ।। [१९१] एवं तु कसायग्गिं संतोसेणं तु विज्झवेयव्वो । राग-द्दोसपवत्तिं वज्जेमाणस्स विज्झाइ || [१९२] जावंति केइ ठाणा उदीरगा हुंति हु कसायाणं । सावज्जं विमुत्तसंगो मुनी विहरे ।। [१९३] संतोवसंत-धिइमं परीसहविहिं व समहियासंतो । निस्संगयाइ सुविहिय ! संलिह मोहे कसाए य ।। [१९४] इट्ठाऽनिट्ठेसु सया सद्द-फरिस - रस- रुव-गंधेहिं । सुहदुक्खनिव्विसेसो जियसंगपरीसहो विहरे ।। [१९५] समिईसु पंचसमिओ जिणाहि तं पंच इंदिए सुठु । तिहिं गारवेहिं रहिओ होइ तिगुत्तो य दंडेहिं ।। [१९६] सन्नासु आसवेसु अ अट्टे रुद्दे अ तं विसुद्धप्पा | राग-द्दोस-पवंचे निज्जिणिरं सव्वणोज्जुत्तो || ? कस्स य सुक्खेहिं विम्हओ हुज्जा [१९७] को दुक्ख पाविजा को वा न लभिज्ज मुक्खं ? राग-द्दोसा जइ न हुज्जा ।। [१९८] नवि तं कुणइ अमित्तो सुठु विय विराहिओ समत्थो वि । जं दो वि अनिग्गहिया करेंति रागो य दोसो य ।। [१९९] तं मुयह राग-दोसे सेयं चिंतेह अप्पणो निच्चं । जं तेहिं इच्छह गुणं तं बुक्कह बहुतरं पच्छा ।। [२००] इहलोए आयासं अयसं च करेंति गुणविनासं च । पसवंति य परलोए सारीर - मनोगए दुक्खे | [२०१] धिद्धी अहो अकज्जं जं जाणंतोऽवि राग-दोसेहिं । फलमउलं कडुयरसं तं चेव निसेवए जीवो || [२०२] तं जइ इच्छसि गंतुं तीरं भवसायरस्स घोरस्स । तो तव-संजमभंडं सुविहिय [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [13] ! गिण्हाहि तूरंतो ।। ?I [३३ / १ | मरणसमाहि]

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42