Book Title: Agam 28 Prakirnaka 05 Tandul Vaicharik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kabatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|त्तरिस्स य असीययस्सा य विनाणं ॥ ३॥ नउई नमइ सरीरं वाससए जीविअं पुणो चयइ कित्तिओऽत्थ सुहो भागो दुहभागो य|| कित्तिओ? ॥ ४॥ १२॥ जो वाससयं जीवइ, सुही भोगे य भुंजई। तस्मावि सेवि सेओ, धम्मो य जिणदेसिओ ॥५॥ किं पुण सपच्चवाए, जो नरो निच्चदुक्खिओ। सुदयरं तेणं कायव्यो, थम्भो य जिणदेसिओ ॥६॥नंदमाणो चरे धम, वरं मे लढतरं भवे।अणं दमाणोवि चरे, मा मे पावतरं भवे ॥७॥ नवि जाई कुलं वावि, विजा वावि सुसिक्खिया। तारे नरं व नारि वा, सव्वं पुण्णेहिं वड्डई ॥ ८॥ पुण्णेहिं हायमाणेहि, पुरिसगारोऽवि हायई। पुण्णेहिं वड्डमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि वड्डइ ॥९॥ पुण्णाई खलु आउसो! किच्चाई करणिजाई पोइकराई वन ० धण० जस० कित्ति०, नो यं खलु आउसो! एवं चिंतेयव्वं एसति खलु बहवे समया आवलिया खणा आणापाणू थोवा लवा महत्ता दिवसा अहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छ। जुगा वाससया वास वासकोडीओ वासकोडाकोडीओ जत्थ णं अम्हे बहूई सीलाई वयाइं गुणाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई पडिविज्जस्सामो पट्टविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं आउसो ! नो एवं चिंतेयव्वं भवइ?, अंतरायबहले खलु अयं जीविए, इमे य बहवे वाइयपित्तिअसिंभियसन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीविओ १३। आसी य खलु आउसो! पुब् िमणुया ववगयरोगायंका बहुवाससयसहस्सजीविणो, तं०-जुयलधम्मिआ अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा चारणा विजाहरा, ते णं मणुया अणतिवरसोमचारूरूवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा सुजायसव्वंगसुंदरंगा रत्तुष्पलपउमकरचरणकोमलंगुलितला नगणगरमगरश्री तन्दुलवैचारिक सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधित |
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37